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एकदम विलुप्त हो गया। इस विषय का अनुसंधान करना विशेष
___ यह सब तरफ बात मानी हुई है कि सिंहभूम का एक भाग ऐसे लोगों के पास था जिन्हों ने अपने प्राचीन स्मारक मानभूम जिले में रख छोड़े हैं । ये वास्तव में बहुत ही प्राचीन लोग थे । जिन को श्रावक या जैन कहते हैं। कोलहन में भी बहुत से सरोवर हैं जिन को "हो" जाति के लोग “सरावक सरोवर" कहते हैं। (बंगाल एथनोलोजी में कर्नल डैलटन)
श्रावक या गृहस्थ जैनों ने जंगलों में घस कर तांबे की खाने सोधी जिस में उन्होंने अपनी शक्ति व समय खर्च किया।
(A. S. B. 1869 P. 179-5) इस जाति के गोत्र :--१. अादिदेव, २. ऋषि (भ) देव ३. अनन्तदेव, ४. धर्मदेव ५. गौतम ६. काश्यप, ७. सिखरिया इत्यादि हैं। जोकि आदिदेव-ऋषभदेव (पहले तीर्थ कर), अनन्तदेव (चौदहवें तीर्थ कर), धर्मदेव (पंद्रहवें तीर्थ कर), गौतम (चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी के प्रथम गणधर), काश्यप (श्री ऋषभदेव आदि तीर्थ करों का गोत्र), सिखरिया (सम्मेतशिखर को मानने वाले); यह बात स्पष्ट । करते हैं कि ये श्रावक लोग अत्यंत प्राचीन समय से अर्थात् भगवान् महावीर से बहुत पहले से ही जैन धर्मानुयायी थे ।
____ इस जाति के अतिरिक्त उग्र क्षत्रीय अादि और भी ऐसी अनेक जातियां बंगालदेश में अब भी विद्यमान है जो कि प्राचीन समय में जैनधर्मानुयायी थीं किन्तु आज वे हिन्दू या बौद्ध धर्मों के अनुयायी हैं। .
__ मि० बेगलर व कर्नल डैलटन के मतानुसार :-ब्राह्मण और उन के मानने वालों ने सातवीं शताब्दी के बाद इन श्रावकों को अपने प्रभाव में दबा लिया जो कुछ बचे व उन के धर्म में नहीं गए वे इन स्थानों से दूर जा कर रहे । मकानों को देखने से संभव होता है कि