Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 65
________________ ५४ प्रयोजनीय है किन्तु यह प्रसंग वर्तमान प्रबन्ध का आलोच्य विषय दसवीं शताब्दी में ब्राह्मणों का जोर हो गया था । परन्तु बसंत विलास से विदित होता है कि चालूक्य विरध वाला-मंत्री वस्तुपाल (ईस्वी सन् १२१६१२३३) जब इधर तीर्थयात्रा के लिये प्राया था उस समय लाटा, गादा, . मारु, ढाला, श्रावन्ति एवं बंग के संघपति इस से मिले थे। इस प्रसंग से पता चलता हैं कि तेरहवीं शताब्दी में भी गादा तथा बंग में संगठित जैन संघों के नेता मौजूद थे । और सोलहवीं शताब्दी के बीच में कभी भूमिज लोग पश्चिम उत्तर से नये आये हुओं की सहायता से उन्नति में बढ़े होंगे और उन को (श्रावकों को) जड़मूल से नष्ट किया होगा। श्रावकों को सताकर कोलेहान से भी निकाला था (जर्नल एसि. 1840 N. 696)। परन्तु यह बात बड़े गौरव की है कि :-जैनधर्म को भूल जाने पर भी ये लोग अभी तक बंगाल जैसे मांसाहारी देश में रहते हुए भी अभी तक शाकाहारी हैं। इस जाति में मत्स्य तथा मांस का व्यवहार नहीं । यहां तक कि बालक भी मत्स्व या मांस नहीं खाते। मांसाहारी और हिंसकों के मध्य में रहते हुए भी ये लोग पूर्ण अहिंसक हैं। ये लोग श्री पार्श्वनाथ को अपना कुलदेव मानते हैं। सम्मेतशिखर तथा महाराजा खारवेल द्वारा निर्मित जैन गुफाएं जो खंडगिरि, उदयगिरि, नीलगिरि में हैं दर्शन पूजनार्थ जाते हैं। और जब पार्श्वनाथ जी की यात्रा को जाते हैं तो बंगाली भाषा में भगवान् पार्श्वनाथ की प्रशंसा में एक भजन गाया करते हैं :तुमि देखे जिनेन्द्र देखिल पातिक पोलाय, प्रफुल हल काय, सिंहासन छत्र आछे-चामर आछे कोटा। दिव्य देहके मन आछे किंवा शोभाय कोदा ॥ तुमि० ॥ क्रोध, मान, माया, लोभ मध्ये किछू नांहि । रागद्वष मोह नाँहि एमन गोसाई । तुमि० ॥ के मन शाँतमूर्ति बटे, : बोले सकन भाया, केवलीर मुद्रा एखन साक्षात् देखाय । तुमि० ॥ .

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