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इस सिद्धान्त के अनुकूल (पुष्टि में) और भी प्रमाण हैं यहां संक्षेप में उनका उल्लेख करना भी आवश्यक है । बोधायन के धर्म-सूत्र में अंग और मगध के निवासियों को मिश्रजाति (संकीर्ण योनि) संबोधित कर वर्णन किया है किन्तु इन दोनों जनपदों में आय के वास का निषेध नहीं किया । हम ने दूसरे प्रमाणां द्वारा भी देखा है कि उस समय अंग और मगव में आर्य लोग सम्मान पूर्वक वास
इस पर से हम उक्त बात का अनुमान कर सकते हैं । इस के विपरीत इन ग्र ंथों में किसी भी स्थान पर ऐसा कोई उल्लेख वा सूचक वाक्य देखने में नहीं श्राता कि निर्ग्रथों का संप्रदाय एक नवीन संप्रदाय है और नातपुत्त (महावीर ) इसके संस्थापक हैं । इस पर से हम अनुमान कर सकते हैं कि बुद्ध के जन्म से पहले अति प्राचीन काल से निर्ग्रथों का अस्तित्व चला आता है । फ्रैंच विद्वान गेरिनाट का कहना है कि :-.
There can not longer be that any doubt Parsva was a Historical Personage. According to the Jain Tradition he must have lived a hundred years and died 250 years before Mahavira. His period of activity, therefore corresponds to the 8th century B.C.
The Parents of Mahavira were followers of religion of Parsva....The age we live in, there have appeard 24 Prophets of Jainism. They are ordinarily called Tirthankras with the 23rd Parsvanath we enter into the region of History of reality (Introduction to his essay of Jain Bibliography)