Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 53
________________ ४२ प्रमाण उपस्थित किये हैं उन से यह बात स्पष्टता पूर्वक सिद्ध होती है कि जिस समय जैन, बौद्ध और आजीवकधर्मं बंगालदेश में प्रचार पा रहे थे उस समय इस देश में वैदिक आर्य लोगों के सामान्य परिमाण में प्रवेश करने पर भी वैदिक आर्य-धर्म कुछ भी प्रतिष्ठा प्राप्त न कर सका था । अर्थात् बंगालदेश में, जैन, बौद्ध और आजीवक धर्मों ने ही वैदिक आर्य धर्म से पूर्व प्रतिष्ठा प्राप्त की थी । बेवर आदि विद्वानों ने यह मत प्रकट किया कि जैन-धर्म, बुद्ध धर्म की एक शाखा है, वह इस से स्वतंत्र नहीं है । आगे चल कर विशेष साधनों की उपलब्धि और विशेष परीक्षा के बल पर प्रो० याकोबी ने उपर्युक्त दोनों मतों का निराकरण करके यह स्थापित किया कि जैन और बौद्ध संप्रदाय दोनों स्वतंत्र हैं इतना ही नहीं किन्तु जैन संप्रदाय बौद्ध संप्रदाय से पुराना भी है और ज्ञातपुत्र - महावीर तो जैन संप्रदाय के अंतिम पुरस्कर्ता मात्र हैं। करीब सवा सौ वर्ष जितने परिमित काल में एक ही मुद्द े पर ऐतिहासिकों की इस बात से सब सहमत हैं कि नाम से प्रसिद्ध है, बुद्ध के राय बदलती रही । प्रो० याकोत्री ने लिखा है कि " 1 नतपुत्त जो महावीर अथवा वर्धमान के समकालीन थे । बौद्धग्रंथों में मिलने वाले उल्लेख हमारे इस विचार को दृढ़ करते हैं कि नातपुत (वर्धमान) से पहले भी निर्ग्रथों का ( जो श्राज जैन अथवा श्रार्हत के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं) अस्तित्व था । जब बौद्धधर्म उत्पन्न हु तब निर्ग्रथों का संप्रदाय एक बड़े संप्रदाय के रूप में गिना जाता होगा । बौद्ध पिटकों में कुछ निर्ग्रथों का बुद्ध और उसके शिष्यों के विरोधी के रूप में और कुछ का बुद्ध के अनुयायी बन जाने के रूप में वर्णन श्राता है ।

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