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में हम विशेष कुछ नहीं जानते। यह बांकुड़ा का प्राचीन नाम हो सकता हैं । तथापि यह तो स्पष्ट ही ज्ञात होता है कि यह जनपद मगध के पूर्व एवं मध्य देश के बाहर होने के कारण बंगाल देश में था । हम 'दिव्यावदान' ग्रंथ से निःसन्देह ज्ञात कर चुके हैं कि अशोक के ममय पौड्रवर्धन में बौद्धधर्म से श्राजीवकधर्म की प्रबल प्रतियोगिता चलती थी । एवं यह भी इस ग्रंथ में वर्णन है कि उस समय पौड्रवर्धन में जीवकों की संख्या लगभग अठारह हज़ार थी ।
अतएव हम लिख चुके हैं कि ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी के प्रारंभ से तृतीय शताब्दी के अशोक के शासन काल तक कुछ अधिक दो सौ वर्षों तक बंगालदेश में जैन और श्राजीवकधर्म की ही प्रधानता थी । अशोक और उस के पौत्र दशरथ ने आजीवकों के लिये बराबर तथा नागार्जुन पर्वत (दोनों ही गया जिलान्तर्गत) में छः गुफायें निर्माण करवाई थीं इस से हमारा पूर्वोक्त सिद्धान्त समर्थित होता है । श्रतएव हम यह भी जान चुके हैं कि अशोक के पूर्ववर्ती दो शताब्दियों तक कठोर प्रतियोगिता के फल स्वरूप बौद्धधर्म जैन और श्राजीवकधर्म ही बंगाल में स्थिरता प्राप्त किये हुए थे । किन्तु जब उत्तरवर्ती काल में पृष्टपोषकता (सहायता) के फलस्वरूप बौद्धधर्म प्रबल हो उठा था उस समय जैनधर्म तो अपनी रक्षा कर टिका रहा किन्तु आजीवक धर्मं विलुप्त हो गया । ऐसा अनुमान होता है कि कालक्रम से आजीवकधर्म जैनधर्म में समा गया था। क्योंकि आजीवक संप्रदाय एवं दिगम्बर जैन संप्रदाय में धर्ममत और अनुष्ठानगत नाना प्रकार का सादृश्य था इस लिये उन को एक दूसरे में विलीन हो जाने में कोई विशेष बाधा नहीं थी । ये दोनों संप्रदाय कालक्रम से आपस में मिल गये थे, इस अनुमान की पुष्टि के लिये दो एक प्रभाग भी उपलब्ध हैं। प्रथम प्रमाण