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में आमीवक और निग्रंथ संप्रदाय में अनेक सादृश्य था (camb. Hist. F. 162.) हम लिख आये हैं कि वर्धमान के संग गोसाल ने अनेक दिन राढ़देश में वास किया था । इस से अनुमान किया जा सकता है कि उस ने राढ़देश में भी
धर्मप्रचार किया था। बंगाल में भी आजीवकमत के प्रसार 'के कुछ प्रमाण उपलब्ध हैं। तथा जैन आचारांग सूत्र से ज्ञात होता है कि वर्धमान : जब राढ़देश में भ्रमण करते थे, उस समय उन्हों ने : अनेक लाठोधारी * सन्यासी देख थे। कोई कोई विद्वान, मानता है कि यही लाठीधारी सन्यासी आजीवक थे । बौद्ध साहित्य के नाना स्थानों में आजीवक सन्यासी ओपक और व्याध कन्या चापा के विषय में एक सुन्दर कथा हे । इसी कथा से ज्ञात होता है कि बुद्धदव की जीवित अवस्था में ही आजीवकधर्म ने पश्चिम बंगाल में खूब प्रचार पाया था । कथा संक्षेप में यह है :- मगधराज्य में बोधगया के निकट नाल अथवा नालक ग्राम में ओपक का जन्म हुआ था । उस के शरीर का रंग काला था इस लिये उसे लोग काला ओपक कहते थे । एकदा आपक गया से पूर्व दिशा में भ्रमण करते करते बंकहार (बाकुड़ा ?) जनपद (परसत्थ जोतिका के मतानुसार बंग जनपद ) में पहुंच कर व्यावों के एक ग्राम में आया। वहां पर व्याधी के सरदार ने उसे मास रस देकर उस का सत्कार किया और उसे अपने घर में ही ठहरने का स्थान कला गहाय णलीयं समणे तत्थएवि विहरिंसु (श्राचारग अ०६, उ०३)
(अनुवादक)...