Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 43
________________ पणित भूमि कोटिवर्ष के आसपास का भूखण्ड होना कोई विचित्र बात नहीं है क्योंकि पणित अथवा वज्रभूमि एवं कोटिवर्ष इन दोनों का राढ़ के अन्तर्गत होने का स्पष्ट उल्लेख है। - हम लिख आये हैं कि ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी में बंगाल देश में बौद्ध और जैन दोनों धर्मों का ही प्रचार था किन्तु अल्पकाल में ही प्रतियोगिता में बौद्धधर्म के हार जाने से जैनधर्म ने ही संभवतः प्रधानता प्राप्त की थी। अब यहां स्वभावतः यह प्रश्न उटता है कि आजीवकधर्म का क्या हुआ ? आजीवक संप्रदाय के सम्बन्ध में जैन तथा बौद्ध साहित्य में से जो कुछ विवरण प्राप्त हो उसी से हमें संतुष्ट होना होगा। बौद्ध और जैन साहित्य के प्रसाद से हमें ज्ञात होता है कि गोसाल मंखलीपुत्त नालन्दा में वर्धमान-महावीर के साथ मिला था तथा उस समय से ले कर कुछ समय पर्यन्त वह वर्धमान का अनुगामी रहा किन्तु कुछ दिनों बाद दोनों में मतभेद हो गया तथा गोसाल महावीर के संप्रदाय से अलग हो गया। उस ने वर्धमान से दो वर्ष पूर्व ही (ई० पू० ५५६) कैवल्य प्राप्त होने की घोषणा की एवं आजीवक संप्रदाय की स्थापना की आजीवकों का वेश भी प्रायः निग्रंथों के समान ही था । उन प्रत्येक के हाथ में एक एक मस्कर अर्थात् बांस की लाठी रहती थी। इसीलिये एन को मरकरी बोला जाता था (पाणिनि, ६-१-१५४) और इसी लिये ही गोसाल को जैन और बौद्ध मस्करीपुत्र अथवा मंखलोपुत्त संबोधन करते थे । आजीवकों ने ज्योतिष द्वारा प्रसिद्धि प्राप्त की थी धर्म, मत और अनुष्ठानादि

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