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२६ . ताम्रलिप्ति) कलिंग (राजधानी कांचनपुर) एवं राढ़ (राजधानी कोडिवरिस अर्थात् कोटिवर्ष) इन्हीं कुछ जनपदों का उल्लेख है। अतएव यह सिद्ध होता है कि जैन साहित्य में अंग, बंग, कलिंग तथा राढ़ आर्यक्षेत्रों की मर्यादा को प्राप्त किये थे । तत्पश्चात प्राचारंग सूत्र प्रथम जैन अंग से ज्ञात होता है कि राढ़ देश में इस समय दो भाग थे एक का नाम सुम्भ अर्थात् सुम्हभूमि तथा दूसरे का नाम वनभूमि था । एवं इसी राढ़देश में अचेलक अवस्था में भ्रमण करते समय वर्धमान-महावीर ने बहुत उपसर्ग सहन किये थे। पूर्वोक्त वज्रभूमि के एक अंश का नाम पणीत (अर्थात् प्रणीत) भूमि था । जैन “भगवती" ग्रंथ के मतानुसार इसी पणीत भूमि पर वधमानमहावीर एवं गोसाल मंखलीपुत्र ने छ ॐ वर्ष वास किया था ।
# से कितं खेत्तारिया ? खेत्तारिया अद्धछव्विसइविहा पण्णत्ता तं जहा रायगिह-मगह, चंपा-अंगा, मह तामलित्ति-बंगाय, कंचनपुर-कलिंगा, .........कोडिवरिस च लाढाय....(प्रज्ञापणा, प्रथमस्थान पद ३४) (अनुवादक)
। अह दुच्चर लाढमच्चारी वज्जभूमिं च सुब्भभूमि च, पंतं सेज्ज सेविसु अासाणाई चेव पंताई ॥२॥ लाढेसु तस्सुवसगा, बहवे लूसिंसु अह लूहदेसिए भते. कुक्कुरा तत्थ हिंसिंसु ॥३॥ इत्यादि
. (अाचारंग, अ०, ६ उ० ३) (अनुवादक) है, भगवती सत्र में भगवान महावीर स्वयं कहते हैं :
"तएणं से गोसाले मंखलिपुत्त हठे तुझे ममं तिक्खुत्तो अायाहिणं पयाहिणं जाव न मंसित्ता, एग्रं व्यासि-'तुझेणं भंते ! मम धम्माचरिया, अहन्नं तुझं अंतेवासी' । तएणं अहं गोयामा ! गोसालस्स मंखलि पुत्तस्स एथमटठं पडिसुणेमि । तएणं अहं गोयमा ! गोसालेण मंखलिपुत्तण सद्धि पणिय भूमिए छव्वासाइं लाभ-अलाभ सुख-दुक्खं, सक्कारम-सक्कारं पञ्जणुब्भवमाणे अणिच्च जागरिय विररित्था ।” (भगवती पंचमांगे श० १५)
(अनुवादक)