Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 24
________________ १३ स्थानों में जैनधर्म विशेष प्रबल था । पूर्वोक्त पहाड़पुर के ताम्रपत्र से वटगोहाली नामक स्थान में अवस्थित जिस जैन विहार का पता मिला है वह पौंड्रवर्धन नगर से अधिक दूर नहीं था। अतएव इस बात को माना जा सकता है कि बटगाहाली विहार के निग्रंथ जैन पौंड्रवर्धनिया शाखा के अनुयायी थे । एवं इस समय से कुछ उत्तरवर्ती काल में ह्य सांग ने पौंडवर्धन में जिन समस्त निग्रंथों को देखा था, वे भी इसी शाखा के अनुयायी थे। फाहियान एवं ह्य साग दोनों ने ही त.म्रालप्ति नगर में निवास किया था और उन में से किसी ने भी जैन संप्रदाय के सम्बन्ध में कुछ नहीं लिखा। किन्तु आप को ज्ञात हो गया है कि ताम्रलिप्ति जैनों का एक बड़ा केन्द्र था । इसी लिये हम पहले कह आये हैं कि ह्य सांग की मौनता से कोई सिद्धांत निश्चित करना उचित नहीं है । एवं जिन सब स्थानों का वर्णन करते समय उस ने जैनों के सम्बन्ध में कुछ भी उल्लेख नहीं किया उन सब स्थानों में भी थोड़े बहुत जैन अवश्य ही थे ऐसा माना आ सकता है। ...... .. ___ हम देखते हैं कि गुप्तयुग में बंगालदेश में जैन,बौद्ध, वैष्णव तथा शैव ये चारों धर्म संप्रदाय ही अधिक प्रतिष्ठा सहित विद्यमान थे। यहां पर एक प्रश्न उपस्थित होता है कि ये धर्म-संप्रदाय किस प्रकार और किस समय बंगालदेश में विस्तार पाये, और किस धर्म ने सर्व प्रथम इस देश में प्रधानता प्राप्त की ? दुःख का विषय है कि बंगाल देश का गुप्तयुग से पहले का इतिहास

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