Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 29
________________ १८ है कि सम्राट खारवेल के शासनकाल में कलिंग में ब्राह्मणों का अभाव नहीं था तथा सम्राट स्वयं जैनधर्मानुयायी होते हुए भी उस ने ब्राह्मणों के प्रति यथेष्ट दाक्षिण्यता बतलाई थी । हाथीगुफा के लेख में बौद्धों का कुछ भी उल्लेख नहीं है । ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में प्रायः समस्त भारतवर्ष में मौर्य सम्राट अशोक का (ई० पू० २७२ से २३२) साम्राज्य था । उसने अपने शासन के तेरहवें वर्षं (ई० पू० २६०) कलिंग राज्य को विजय किया था (Rock Edict XIII ) | बंगालदेश अशोक के राज्याधिकार में था या नहीं, इस का कोई भी प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ | किन्तु बंगालदेश उसके राज्याधिकार में था ऐसा अनुमान करने के लिये यथेष्ठ परोक्ष प्रमाण हैं । प्रथम अशोक ने स्वयं ही दो आदेशों में (R. E. II, XIII) अपने साम्राज्य के बाहर समीपवर्ती ( संलग्न) राज्यों का उल्लेख किया है। उन समीपवर्ती राज्यों में चोल, पांड्य, सत्यपुत्र, केरलपुत्र एवं ताम्रपर्णी ( अर्थात् सिंहल ) ये पांच देश ही दक्षिण भारत में अवस्थित थे । अन्यान्य समीपवर्ती राज्यों में कोई भी राज्य भारतवर्ष में नहीं था । सभी राज्य भारतवर्ष के बाहर पश्चिम दिशा में अवस्थित थे । ध्यान में रखने की बात है कि दोनों बार में से एक बार भी अशोक ने दूसरे समीपवर्ती राज्यों में पूर्व - भारतवर्ष (तथा बंगाल) के किसी भी जनपद का उल्लेख नहीं किया । अतएव संभवतः अनुमान होता है कि बंगालदेश अशोक के साम्राज्य में ही था । और यह बात भी स्वाभाविक ही है कि मगध के संलग्न प्रांतवर्ती होने से बंगालदेश के लिये विराट शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य से आत्मरक्षा करना संभव नहीं था । हम पूर्व लिख ये हैं कि

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