Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 34
________________ मगध में श्राजीवक संप्रदाय का यथेष्ठ प्रभाव था । तथा उस समय पौंड्रवर्धन प्रभृति बंगालदेश के विभिन्न स्थानों में भी उन का सद्भाव होना कोई विचित्र बात नहीं है। बंगाल में आजीवकधर्म ने कब प्रवेश किया एवं इस संप्रदाय की विशेषता क्या थी इस विषय की यथास्थान आलोचना करेंगे। यहां पर तो मात्र इतना ही लिखने का प्रयोजन है । यह बात निश्चित रूप से ज्ञात नहीं होती कि उत्तरवर्ती काल में आजीवकधर्म कैसे और कब भारतवर्ष और बंगाल से लुप्त हुआ, तथापि आजीवक संप्रदाय धीरे धीरे जैनसंप्रदाय में मिल गया होगा ऐसा अनुमान करने के लिए कुछ प्रमाण उपलब्ध है। ईसा पूर्व चतुर्थ शताब्दी में मौर्य राज्यवंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त के शासनकाल में (ई० पू. ३२२ से २६८) भारतवर्ष में बौद्धधर्म से जैनधर्म की प्रबलता अधिकतर थी ऐसा स्वीकार करना पड़ता है । एव चन्द्रगुप्त स्वयं भी संभवतः जैन धर्मावलम्बी था। उस के शासनकाल में जैनधर्म ने दक्षिण भारत अंतर्गत सुदूर कर्णाटकदेश पर्यंत विस्तार प्राप्त किया था । यदि जैनसाहित्य देखा जाय तो चन्द्रगुप्त चौबीस वर्ष शासन करने के बाद सिंहासन त्याग कर कर्णाटक में चला गया था एव वहां पर वर्तमान मैसूर के अन्तर्गत "श्रवणबेलगोला नामक स्थान में जैन भिक्षु रूप में उस की मृत्यु हुई थी । इस जैन प्रवाद को ऐतिहासिक लोग स्वीकार नहीं करते । जो हो, यह बात सहज में ही अनुमान की जा सकती है कि जिस समय . जैनधर्म सुदूर कर्णाटक पर्यंत विस्तृत था ...एवं चन्द्रगुप्त के

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