Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 33
________________ २२ उपलब्ध हैं । दिव्यावदान, अशोकावदान, सुमागधावदान प्रभृति बौद्ध साहित्य से ज्ञात होता है कि अशोक के शासनकाल में पौंड्र वर्धन में निग्रंथों की हो अधिकता थी, एवं निग्रंथ और सद्धम ( अर्थात् बौद्ध) संप्रदाय में प्रबल प्रतियोगिता (संघर्ष) चलती थी। हम आगे देखेंगे कि पौंड्रवर्धन प्रभृति स्थानों पर जैनधर्म का प्रसार अशोक से बहुत पूर्व ही प्रारंभ हुआ था । यहां पर विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि अशोक के शासनकाल में पौंड्रवर्धन में मात्र जैन और बौद्धधर्म ही प्रचलित नहीं थे किन्तु गोशाल मंखलीपुत्र द्वारा (ई० पू० छठी शताब्दी) चलाया हुआ आजोवकधर्म भी प्रचलित था । मात्र इतना ही नहीं किन्तु दिव्यावदान की एक कथा से ज्ञात होता है कि उस समय पौंड्रवर्धन में अठारह हजार से भी अधिक आजीवक थे । अशोक के शासनकाल में भारतवर्ष में आजीवकधर्म की प्रतिष्ठा के विषय में अन्य स्वतंत्र प्रमाण भी उपलब्ध हैं। एक आदेशपत्र ( Piller Edict VII) में अशोक ने लिखा है कि उस ने बोद्ध, जैन, आजोवक आदि सकल संप्रदायों के उपकारार्थं धर्माचारियों को नियुक्त किया है। इस के सिवाय हमें और भी ज्ञात होता है कि अशोक ने खलतिक ( गया जिलांतर्गत " बराबर " ) नामक पर्वत में आजीवकों के लिये तीन गुफाएं निर्माण की थीं। अशोक के पौत्र दशरथ ने भी खलतिक पर्वत के निकट ही नागाज्जुन नामक पत्र में आजीवकों के लिये और भी तीन गुफाएं निर्माण करवाई थीं । अतएव इस में संदेह नहीं है कि ईसा पूर्व तोसरी शताब्दी में

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