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है कि सम्राट खारवेल के शासनकाल में कलिंग में ब्राह्मणों का अभाव नहीं था तथा सम्राट स्वयं जैनधर्मानुयायी होते हुए भी उस ने ब्राह्मणों के प्रति यथेष्ट दाक्षिण्यता बतलाई थी । हाथीगुफा के लेख में बौद्धों का कुछ भी उल्लेख नहीं है ।
ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में प्रायः समस्त भारतवर्ष में मौर्य सम्राट अशोक का (ई० पू० २७२ से २३२) साम्राज्य था । उसने अपने शासन के तेरहवें वर्षं (ई० पू० २६०) कलिंग राज्य को विजय किया था (Rock Edict XIII ) | बंगालदेश अशोक के राज्याधिकार में था या नहीं, इस का कोई भी प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ | किन्तु बंगालदेश उसके राज्याधिकार में था ऐसा अनुमान करने के लिये यथेष्ठ परोक्ष प्रमाण हैं । प्रथम अशोक ने स्वयं ही दो आदेशों में (R. E. II, XIII) अपने साम्राज्य के बाहर समीपवर्ती ( संलग्न) राज्यों का उल्लेख किया है। उन समीपवर्ती राज्यों में चोल, पांड्य, सत्यपुत्र, केरलपुत्र एवं ताम्रपर्णी ( अर्थात् सिंहल ) ये पांच देश ही दक्षिण भारत में अवस्थित थे । अन्यान्य समीपवर्ती राज्यों में कोई भी राज्य भारतवर्ष में नहीं था । सभी राज्य भारतवर्ष के बाहर पश्चिम दिशा में अवस्थित थे । ध्यान में रखने की बात है कि दोनों बार में से एक बार भी अशोक ने दूसरे समीपवर्ती राज्यों में पूर्व - भारतवर्ष (तथा बंगाल) के किसी भी जनपद का उल्लेख नहीं किया । अतएव संभवतः अनुमान होता है कि बंगालदेश अशोक के साम्राज्य में ही था । और यह बात भी स्वाभाविक ही है कि मगध के संलग्न प्रांतवर्ती होने से बंगालदेश के लिये विराट शक्तिशाली मौर्य साम्राज्य से आत्मरक्षा करना संभव नहीं था । हम पूर्व लिख ये हैं कि