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________________ हम भागवत, शैव आदि पौराणिक धर्मों की संक्षिप्त अालोचना कर चुके हैं। अब आगे चलें। ईसा की पूर्ववर्ती कई शताब्दियों से ही बंगाल में जैन, बौद्ध और वैदिक धर्म भी प्रचलित थे । ऐसी मान्यता की पुष्टि के लिये कई कारण उपलब्ध हैं। ईसा पूर्व प्रथम (दूसरे मतानुसार द्वितीय) शताब्दी में कलिगाधिपति खारवेल ने उन्तर एवं दक्षिण भारत में एक विस्तृत साम्राज्य स्थापित किया था । उस की हाथीगुफा लिपि [शिलालेख से ज्ञात होता है कि वह जैनधर्मावलम्बी था एवं जैनधर्म की उन्नति के लिये वह विशेष प्रयत्नशील था। अपने राज्य के तेरहवें वर्ष में उस ने कलिंग नगर में जैन संप्रदाय की एक सभा निमंत्रित की थी तथा इस सभा में जैनशास्त्र समूह की अलोचना की गयी थी। इसी वर्ष उस ने जैन मुनियों का श्वेतवस्त्र भेंट किये थे। इस से एक वर्ष पहले नन्दराजा द्वारा कलिंग से ले जायी गयी हुई एक जैनमर्ति को यह मगध से पुनरे द्वार कर वापिस कलिंग में लाया था। इन सब प्रमाणों से स्पष्ट ज्ञात होता है कि उस समय कलिंग राज्य जैनधर्म का एक प्रधान-केन्द्र था। अतएव जिस समय कलिंग में जैनधर्म का इतना प्राधान्य था उस समय बंगालदेश में भी जैनधर्म का बहुत प्रभाव था ऐसा स्वीकार करना अनुचित न होगा। यहां इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि ह्य सांग ने भी कलिंगदेश में जैन-संप्रदाय का ही प्रभाव सब से अधिक देखा था। ऐसा उल्लेख किया है। तथा उस समय बंगालदेश के नाना स्थानों में भी जैनों का प्रभाव खूब ही अधिक था । उपयुक्त हाथीगुफा के लेख से यह बात भी जानी जाती
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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