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________________ पाया जाता है। पातंजन महाभाष्य में शिवोपासना का उल्लेख है । इस उल्लेख के समय से कितना पहिने अथवा कितना बाद में इस धर्म ने बंगाल में प्रवेश किया था इस के पिपय में कुछ नहीं कहा जा सकता। इसी कुषाणयुग में ही महायान एवं हीनयान इन दोनों बौद्ध संप्रदायों की उत्पत्ति हुई थी। हम लोग इस बात को जान चुके हैं कि ससांग के समय में बंगालदेश में हीनयान और महायान इन दोनों संप्रदायों के हा द.द्ध थे। कुषाण युग में वौद्धों के जिस नवीन संप्रदाय का उत्पत्ति हुई थी उसी का नाम महायान था। इन्हीं महायान बौद्धों ने प्राचीनपंथा बौद्धों को हीनयान नाम दिया । अतएव यह बात मान सकते है कि ह्य, सांग के समय बंगाल में जा हीनयान संप्रदाय था वही बंगाल का प्राचीनतर बौद्ध संप्रदाय था। महायान संप्रदाय ने अवश्य ही कुषाण युग के बाद बंगाल में प्रचार पाया था। किन्तु महायान बौद्धधर्म ने बंगाल में कैसे प्रवेश किया इस विषय को विशेष रूप से जानने के लिये हमारे पास कोई साधन नहीं है। गुप्तयुग में बंगालदेश में शैव, वैष्णव आदि पौराणिक धर्मों के सिवाय वैदिक ब्राह्मण धर्म भी प्रचलित था। सम्राट प्रथम कुमारगुप्त के (ई० स० ४१५ से ४५५) समय के दो ताम्रपत्रों द्वारा (ई० स० ४४३ और ४४८) हम जान सकते हैं कि उस समय पौंड्रवर्धन-मुक्ति में (अर्थात् उत्तर बंगाल में) ब्राह्मण लोग अग्निहोत्र पंचमहायज्ञ-प्रभृति वैदिक क्रिया कर्म करते थे। इस वैदिक ब्राह्मण धर्म ने बंगाल में किस समय प्रवेश किया इस विषय को अलोचना करने की आवश्यक्ता है।
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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