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________________ १५ 7. म हम' पहले कह आये हैं कि ईसा की पांचवीं शताब्दी में उत्तरबंगाल में कोकामुख देवता के लिये एक मंदिर निर्माण किया गया था । यह कोकामुख संभवतः शिव का एक रूप ही था यदि ऐसा ही हो तो इसी को बंगाल में शिवधर्म का प्रथम ऐतिहासिक प्रमाण समझ कर ग्रहण करना चाहिए। इस से उत्तर काल में कर्णसुवर्ण के राजा शशांक एवं कर्णसुवर्ण विजेता भास्करवन ये दोनों ही शैव थे । वर्तमान में यह कहना कठिन है कि बंगालदेश में शैवधर्म ने अपना प्रभाव कैसे फैलाया था । यह धर्म भारतवर्ष का एक प्राचीन धर्म है। सिंधु देशान्तरगत मोहनजोदडो नामक स्थान से शिवलिंग, शिवमूर्ति आदि ऐतिहासिक युग से भी पहले के अनेक शैवधर्म के प्रमाण पाये गये हैं । ऋगवेद के देवता रुद्र को कई लोग शिव ही स्वीकार करते हैं । किसी किसी विद्वान का यह मत हैं कि बंगाल के प्राचीनतम अधिवासी श्रंग, बंग पौंड्र आदि tribe के जन समाज में तांत्रिक लिंगपूजा प्रचलित थी । इसी लिंग पूजा के साथ प्रागैतिहासिक शैवधर्म का योग होना कोई विचित्र बात नहीं है । यदि ऐसा ही हो तब कहना होगा कि शैवधर्म बंगाल का आदि धर्म था । जिस शैवधर्म का भारतवर्ष में प्रचलन अशों में प्राचीन शैवधर्मं से स्वतंत्र था। किन्तु ऐतिहासिक-युग के पाया जाता है वह अनेक इसी उत्तरवक्त शैवधर्म 1 इस नव शैवधर्म का को नवशैव नाम दिया जा सकता है । सुस्पष्ट प्रमाण ईसा की प्रथम शताब्दी के कुषाण राजा के सिक्के में
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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