Book Title: Avashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Author(s): Manvijay
Publisher: Devchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
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________________ | अनुयोग बावश्यकनियुक्तेरव पृथक्त्वं आर्यरक्षित चूर्णिः // 350 // नुयोगकरणाव्यवच्छिन्नाः // 773 // येन पृथक्त्वं कृतं तमाहदेविंदवंदिएहि महाणुभागेहि रक्खिअन्जेहिं / जुगमासज्ज विभत्तो अणुओगो तो कओ चउहा // 774 // युगं कालस्वरूपमासाद्य प्रवचनहिताय 'विभक्त' पृथक् पृथक व्यवस्थापितः॥ 774 // आर्यरक्षितप्रसूतिमाहमाया य रुद्दसोमा पिआ य नामेण सोमदेवुत्ति / भाया य फग्गुरक्खिअ तोसलिपुत्ता य आयरिया // 775 // निजवण भद्दगुत्ते वीसुं पढणं च तस्स पुव्वगयं / पव्वाविओ य भाया रक्खिअखमणेहिं जणओ अ॥७७६॥ तोसलिपुत्राश्चाचार्याः येषां पार्वे आर्यरक्षितः प्रव्रज्य एकादशाङ्गानि दृष्टिवादं च कियन्तं पपाठ / ततः स विद्यमानाशेषदृष्टिवादपाठाय श्रीवज्रान् व्रजन् उज्जयिनीस्थभद्रगुप्ताचार्याणां निर्यामणमकार्षीत् / ततस्तद्वचसा विश्वगुपाश्रयस्थस्य पठनं जातं, वज्रान्ते पूर्वगतं गृहीतं तेन // 776 // यदुक्तं-'अनुयोगस्ततः कृतश्चतुर्द्धा, तत्रानुयोगचातुर्विध्यमाह मूलभाष्यकार:कालियसुयं च इसिभासियाई तइओ य सूरपण्णत्ती। सव्वोय दिहिवाओ चउत्थओहोइ अणुओगो॥१२४॥मू.भा. 'तृतीयश्च' कालानुयोगः स च सूर्यप्रज्ञप्ती (प्तिरि) त्युपलक्षणात् [चन्द्रप्रज्ञप्त्यादि], कालिकश्रुतमेकादशाङ्गरूपं चरणकरणानुयोगः, ऋषिभाषितानि उत्तराध्ययनादीनि धर्मकथानुयोग इति गम्यते, चतुर्थो भवत्यनुयोगो द्रव्यानुयोगः // 124 // ऋषिभाषितानि धर्मकथानुयोग इत्युक्तं ततश्च महाकल्पश्रुतादीनामपि ऋषिभाषितत्वात् दृष्टिवादादुद्धृत्य तेषां | प्रतिपादितत्वाद् धर्मकथानुयोगत्वप्रसङ्ग इत्यतस्तदपोहमाह जंच महाकप्पसुयं जाणि य सेसाणि छेयसुत्ताणि / चरणकरणाणुओगोत्ति कालियत्थे उवगयाइं // 777 // 3455 वृत्तान्तश्च नि० गा० [334-333 भा० गा. 124 // 350 //

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