Book Title: Avashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Author(s): Manvijay
Publisher: Devchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
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________________ आवश्यक नियुक्तेरव चूर्णिः प्रत्याख्यानव्याख्या यावजीव तयाव्याख्या च निगा 1053 // 447 // दित्साभावभेदभिन्नं, नामप्रत्याख्यानमभिधानसूत्रं, आकारः प्रत्याख्यानमित्यक्षराणि, आख्या उपवासादिका, तयोनिक्षेपो | न्यसनं स्थापनाप्रत्याख्यानं // 1052 // दव्वंमि निण्हगाई 3 निविसयाई अ होइ खित्तंमि 4 / भिक्खाईणमदाणे अइच्छ 5 भावे पुणो दुविहं 6 // 1053 // द्रव्ये निवादिप्रत्याख्यानं, निर्विषयस्याऽऽदिष्टस्य क्षेत्रप्रत्याख्यानं / भिक्षादीनामदाने सति अतिगच्छेति वचनमदित्सेति वा प्रत्याख्यानं // 1053 // सुअ णोसुअ सुअ दुविहं पुच 1 मपुव्वं 2 तु होइ नायव्वं / नोसुअपचक्खाणं मूले 1 तह उत्तरगुणे अ२॥१०५४ // श्रुतप्रत्याख्यानं नोश्रुतप्रत्याख्यानं, श्रुतप्रत्याख्यानं द्विविधं, पूर्वश्रुतप्रत्याख्यानं अपूर्वश्रुतप्रत्याख्यानं च, तत्र पूर्वश्रुतप्रत्याख्यानं प्रत्याख्यानाख्यं नवमं पूर्वमेव, अपूर्वश्रुतप्रत्याख्यानं त्वातुरप्रत्याख्यानादिकं, नोश्रुतप्रत्याख्यानं तु श्रुतप्रत्याख्यानादन्यत् // 1054 // यावज्जीवतयेत्याह जावदवधारणमि जीवणमवि पाणधारणे भणि। आपाणधारणाओ पावनिवित्ती इहं अत्थो // 1055 // प्राणधारणं यावत् पापनिवृत्तिरित्यर्थः // 1055 // जीवनं च प्राणधारणं, जीवनं जीवितं चेत्येकोऽर्थः, तत्र || जीवितं दशधेत्याह // 447 //

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