Book Title: Avashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Author(s): Manvijay
Publisher: Devchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 399
________________ आवश्यक नियुक्तेरव | नमस्कार नियुक्तिः | नि० गा० 891-893 -चूर्णिः // 391 // ************&&&&&&&&&& ग्दृष्टिः। पदं पञ्चधा-तत्राश्व इति नामिक, खल्विति नैपातिक, परीत्यौपसर्गिकं, धावतीत्याख्यातिकं, संयत इति मिश्र, एवं 'नम' इति नैपातिकं पदं / नम इत्येतत्पूजार्थ ‘णम प्रह्वत्वे', द्रव्यभावसङ्कोचनप्रधानः पदार्थो द्रव्यभावसङ्कोचनपदार्थः, तत्र द्रव्यसङ्कोचनं करशिरःपादादिसङ्कोचः, भावसङ्कोचनं विशुद्धमनोयोगः // 890 // प्ररूपणामाहदुविहा परूवणा छप्पया य नवहा य छप्पया इणमो / किं कस्स केण व कहिं किचिरं कइविहो व भवे // 891 // षट्पदा नवधा-नवपदा च, चशब्दात्पञ्चपदा च, किं ? कस्य ? केन वा ? व वा ? कियच्चिरं? कतिविधो [वा] भवेन्नमस्कारः॥ 891 // आधद्वारमाहकिं ? जीवो तप्परिणओ (दा०१) पुवपडिवन्नओ उ जीवाणं / जीवस्स व जीवाण व पडुच्च पडिवजमाणं तु // 892 // किंशब्दोऽत्र प्रश्ने, अयं च प्राकृतेऽलिङ्गः, [किं सामायिक ?] को नमस्कारः, तत्र नैगमाद्यशुद्धनयानां जीवस्तज्ज्ञानलब्धियुक्तो योग्यो वा नमस्कारः, शब्दादिशुद्धनयमतेन तत्परिणतो जीवो नमस्कारः। कस्येत्याह-पूर्वप्रतिपन्न एव यदा अधिक्रियते तदा व्यवहारनयमाश्रित्य जीवानां बहुजीवस्वामिक इत्यर्थः, प्रतिपद्यमानं तु प्रतीत्य जीवस्य वा जीवानां वा // 892 // केनेत्याहनाणावरणिजस्स य दसणमोहस्स तह खओवसमे (दा०३)। जीवमजीवे अहसु भंगेसु उ होइ सव्वत्थ // 893 // मतिश्रुतज्ञानावरणीयस्य सम्यग्दर्शन [ साहचर्याज्ज्ञानस्य दर्शन] मोह[नीय]स्य च क्षयोपशमेन साध्यते नमस्कारः। केत्याह-जीवे अजीवे इत्याद्यष्टसु भङ्गेषु स्यात्सर्वत्र, तथाहि-'जीवस्स सो जिणस्स उ 1 अजीवस्स उ जिणिंदपडिमाए 2 / // 391 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460