Book Title: Avashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Author(s): Manvijay
Publisher: Devchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
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________________ बावश्यकनिर्युक्तेरव // 443 // SXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX र्थिकानि, एकस्यैव सामायिकशब्दस्य निष्पत्तये सामादयश्चत्वारोऽपि शब्दा व्याप्रियन्ते इत्येकार्थाः, तेषां सामादीनां निक्षेपः कार्यः // 1043 // द्रव्यसामादीनाहमहुरपरिणाम सामं समं तुला संम खीरखंडजुई। दोरे हारस्स चिई इगमेआई तु दवंमि // 1044 // ओघतो मधुरपरिणाम द्रव्यं-शर्करादि द्रव्यसामं, समं तुलाद्रव्यं, क्षीरखण्डयुक्तिः-क्षीरखण्डयोजनं द्रव्यसम्यक्, सूत्रदवरको हारस्य-मुक्ताकलापस्य चितिः-प्रवेशनं द्रव्येकं, एतान्युदाहरणानि द्रव्यविषयाणि // 1044 // भावसामादीनाहआओवमाइ परदुक्खमकरणं 1 रागदोसमझत्थं 2 / नाणाइतिगं३ तस्साइ पोअणं 4 भावसामाई // 1045 // आत्मोपमया परदुःखाकरणं भावसाम, अनासेवनया रागद्वेषमाध्यस्थ्यं समं, ज्ञानादित्रयमेकत्र सम्यक् , तस्य सामादेरात्मनि प्रोतनमिकमुच्यते // 1045 // सामायिकशब्दयोजनात्वेवं साम्नः समस्य सम्यञ्चो वा आत्मनि इकं सामायिक निपातनात् / सामायिकपर्यायशब्दानाहसमया सम्मत्त पसत्थ संति सुविहिअ सुहं अनिंदं च / अदुगुंछिअमगरिहिअं अणवजमिमेऽवि एगट्ठा // 1046 // इमेऽप्येकार्था न केवलं सामाइअं समइअं इत्यादयः प्रागुक्ता एव // 1046 // कण्ठतः स्वयं वा (स्वयमेव) चालनामाहको कारओ, करंतो किं कम्म? जंतु कीरई तेण / किं कारयकरणाण य अन्नमणन्नं च ? अक्खेवो // 1047 // द्रव्यभाव| सामादयः सामायिकपर्यायআখ नि० गा० 10441047 // 443 //

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