Book Title: Avashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Author(s): Manvijay
Publisher: Devchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund
View full book text
________________ आवश्यकनियुक्तेरव चूर्णिः // 389 // नमस्कारनियुक्तिः नि० गा. 880-887 अधुना सूत्रं, [ अत्र सूत्ररक्षणगाथासप्तक-'अप्प०' इत्यादि] ['अप्पगंथमहत्थं बत्तीसदोसविरहियं जं च / लक्खणजुत्तं सुत्तं अट्ठहि य गुणेहि उववेयं // 880 // अलिबमुवघायजणयं निरस्थयमवत्थयं छलं दुहिलं / निस्सारमधियमूर्ण पुणरुत्तं वाहयमजुत्तं // 881 // कमभिण्णवयणभिण्णं विभत्तिभिन्नं च लिंगभिन्नं च / अणभिहियमपयमेव य सभावहीणं ववहियं च // 882 // कालजतिच्छविदोसा समयविरुद्धं च वयणमित्तं च / अत्थावत्तीदोसो य होइ असमासदोसोय // 883 // उवमारूवगदोसानिइस पदस्थसंधिदोसो य / एए उ सुत्तदोसा बत्तीसं होति णायव्वा // 4 // निदोसं सारवन्तं च हेउजुत्तमलंकियं / उवणीयं सोवयारं च मियं महुरमेव य॥८८५॥ अप्पक्खरमसंदिद्धं सारवं विस्सओमुहं / अत्योभमणवजं च सुत्तं सवण्णुभासियं // 886 // ] तच्च (सूत्रं च ) पश्चनमस्कारपूर्व, स चोवत्याद्यनुयोगद्वारानुसारतो व्याख्येयः, तत्र नमस्कारनियुक्तिमाहउप्पत्ती निक्खेचो पयं पर्यत्यो परूणा वत्थु / अखेव पंसिद्धि कमो पओयणकलं नमोकारो // 887 // उत्पत्तिः नमस्कारस्य नयानुसारतश्चिन्त्या, निक्षेपो न्यासः कार्यः, पदं पदार्थश्च वाच्यः, प्ररूपणा कार्या, वस्तु तदह वाच्य, आक्षेपः आशङ्का, प्रसिद्धिस्तत्परिहाररूपा, क्रमो अहंदादिः, प्रयोजनं तद्विषयमेव, अथवा अपवर्गाख्यं, फलं क्रियाऽनन्तरभावि स्वर्गादिकं, नमस्कार एभिाश्चिन्त्यः॥ 887 // उत्पत्तिमाह इदं गाथासप्तकं अवचूां नास्ति किन्तु हारे० वृत्ती सटी कंगाधासप्तकं नियुक्तिगाथात्वेन दर्शितमस्ति अतोऽत्रापि नियुक्तिगाथाक्रमानुसन्धानार्थ वा तन्मूलमानं दर्शितम् / XXXXXXXXX // 389 //

Page Navigation
1 ... 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460