Book Title: Avashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Author(s): Manvijay
Publisher: Devchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund

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Page 407
________________ बावश्यकनियुक्तेरव सिद्धनिक्षेपाः नि० गा० 933-937 चूर्णिः // 399 // BRRK********* I आर्यखपुटवत् , गुडशस्त्रपुरे परिव्राजकः साधुभिर्वादे जितः, मृत्वा व्यन्तरः साधुद्वेषी, आगत्यार्यखपुटैः प्रतिबोधितः / भागिनेयो भरुकच्छे बौद्धमिलितो विद्याभिराहारमानयति तेषां तत्र गमने स नष्टो बौद्धप्रासादो नतः // 932 // साहीणसव्वमंतो बहुमंतो वा पहाणमंतो वा / नेओ स मंतसिद्धो खंमागरिसुव्व साइसओ // 933 // स्तम्भाकर्षवत् , एकेन राज्ञा साध्वी अन्तःपुरे क्षिप्ता, सङ्घसमवाये कृते मन्त्रसिद्धेन साधुना मण्डपस्तम्भाकर्षणेन भापितः सः, ततो मुक्ता // 933 // सव्वेवि दव्वजोगा परमच्छेरयफलाऽहवेगोवि। जस्सेह हुन्ज सिद्धो स जोगसिद्धो जहा समिओ // 934 // आर्यसमिता ब्रह्मद्वीपनिवासितापसप्रतिबोधकः // 934 // आगमसिद्धो सव्वंगपारओ गोअमुव्व गुणरासी। पउरत्थो अत्थपरो व मम्मणो अत्थसिद्धत्ति // 935 // प्रचुरार्थः अर्थपरो वा, तन्निष्ठः // 935 // जो निच्चसिद्धजत्तो लद्धवरो जो व तुंडियाइव्व / सो किर जत्तासिद्धोऽमिप्पाओ बुद्धिपज्जाओ // 936 / / लब्धवरो यो वा तुण्डिकादिवत् / एकस्मिन् ग्रामे तुण्डिको वणिक, अनेकशस्तस्याब्धौ प्रवहणं भग्नं तथापि स न भन्नः, प्रसन्नदेवेन बहुद्रव्यं दत्तं, स यात्रासिद्धः // 936 // विउला विमला सुहुमा जस्स मई जो चउब्विहाए वा / बुद्धीए संपन्नो स बुद्धिसिद्धो इमा सा य // 937 // ** ***KX

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