Book Title: Avashyak Sutra Niryukterev Churni Part 01
Author(s): Manvijay
Publisher: Devchandra Lalbhai Jain Pustakoddhar Fund

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Page 427
________________ आवश्यकनियुक्तेरव चूर्णिः नमस्कारनियुक्तिः नि०मा० 967-972 // 419 // त्रीणि शतानि धनुषां त्रयस्त्रिंशदधिकानि धनुषस्त्रिभागश्च क्रोशषड्भागो वर्तते 'यत्' यस्मात् परमावगाहोऽयं सिद्धानां, ततः क्रोशस्य षड्भागः // 965-966 // उत्ताणउव्व पासिल्लउब्व अहवा निसन्नओ चेव / जो जह करेइ कालं सो तह उववजए सिद्धो // 967 // उत्तानकः पृष्ठतोऽर्धावनतादिस्थानतः, पार्श्वस्थितस्तियस्थितो वा // 967 // इहभवमिन्नागारो कम्मवसाओ भवंतरे होइ / न य तं सिद्धस्स जओ तम्मि वि तो सो तयागारो॥९६८॥ इहभवभिन्नाकारः कर्मवशाद्भवान्तरे स्वर्गादौ स्यात् , तदाकारभेदस्य कर्मनिबन्धनत्वात् , न च तत्कर्म सिद्धस्य, यतः 'तस्मिन्' अपवर्ग ततोऽसौ सिद्धः तदाकारः-पूर्वभवाकारः॥ 968 // जं संठाणं तु इहं भवं चयंतस्स चरमसमयंमि / आसी अपएसघणं तं संठाणं तहिं तस्स // 969 // प्रदेशघनं त्रिभागेन रन्ध्रपूरणात् // 969 // दीहं वा हस्सं वा जं चरमभवे हविज संठाणं / तत्तो तिभागहीणा सिद्धाणोगाहणा भणिआ॥ 970 // दीर्घ पञ्चधनुःशतप्रमाणं, इस्वं हस्तद्वयप्रमाणं // 970 // तिन्नि सया तित्तीसा धणुत्तिमागो य होइ बोद्धव्यो। एसा खलु सिद्धाणं उक्कोसोगाहणा भणिआ॥९७१॥ चत्तारि अ रयणीओ रयणितिभागूणिआ य बोद्धव्वा / एसा खलु सिद्धाणं मज्झिमओगाहणा भणिआ॥९७२।। रनित्रिभागोना // 971-972 // III

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