Book Title: Aradhak Banvano Marg Author(s): Bhadrankarvijay Publisher: Bhadrankarvijay View full book textPage 5
________________ ... प्राराधक बनवानो मार्ग .. - कृति मात्र मन वचन कायाथी थाय छ । तेमां दुष्टत्व लावनार परपीडानो अध्यवसाय छे, अने ते अध्यवसाय राग भावमांथी, स्वार्थभावमांथी जन्मे छ । स्वार्थभावनो प्रतिपक्षीभाव परार्थभाव छे, तेथी परार्थभाव ए ज भव्यत्व परिपाकनो तात्त्विक उपाय छे, परन्तु ते परार्थभाव परपीडाना प्रायश्चित्त रूप होवो जोईए । __ परार्थभावथी एक तरफ नूतन परपीडानु वर्जन थाय छे अने बीजी तरफ पूर्वे करेली परपीडानु शुद्धिकरण थाय छे । तेथी परार्थभाव ए ज साची दुष्कृतगर्दा छे । दुष्कृत गर्हणीय छे, त्याज्य छे, हेय छे, एवी साची बुद्धि तेने ज उत्पन्न थयेली गणाय के जेने सुकृत ए अनुमोदनीय छे, उपादेय छ, अादरणीय छे, एवो भाव स्पष्ट थयेलो होय । ___षरपीडा ए दुष्कृत छे, तो परोपकार ए सुकृत छे, परोपकारमा कर्त्तव्यबुद्धि पेदा थवी ए ज दुष्कृत मात्रनु साचे प्रायश्चित्त छ । परोपकार जेने कर्त्तव्य लागे तेनामां एक बीजो गुण उत्पन्न थाय छे, तेनु नाम कृतज्ञता छे । बीजानो पोता ऊपर थयेलो उपकार जेने स्मरण पथमां नथी ते परोपकार गुणने समज्यो ज नहि । कृतज्ञता गुण सुकृतनुं अनुमोदन करावे छे तेथी परोपकार वृत्ति दृढ थाय छ । एटलुज नथी पण परार्थकरणो अहंकार तेथी विलीन थईजाय छे । पोते जे कई परार्थकरण करे छे, ते पोता ऊपर बीजामोनो जे उपकार थई रह्यो छे तेनो शतांश, सहस्रांश के लक्षांश भाग पण होतो नथी परार्थभावनी साथे कृतज्ञता गुण जोडायेलो होय तो ज ते परार्थभाव तात्त्विक बने छ । अरिहंतादिन शरण गमन __ परार्थवृत्ति अने कृतज्ञता गुण बड़े दुष्कृतगर्दा अने सुकृतानुमोदनरूप भव्यत्व परिपाकना बे उपायो नु सेवन थाय छ । त्रीजो उपाय अरिहंतादि चारनुशरण गमन छ । अहिं शरण गमननो अर्थ ए छे के जेनो परार्थभाव अने कृतज्ञता गुणना स्वामी छे, तेप्रोने ज पोताना एक आदर्श मानवा, तेमना ज सत्कार, सन्मान, आदर बहुमानने पोतानां कर्त्तव्य मानवा। ___परार्थ भाव अने कृतज्ञता गुणना साचा अर्थी जीवोमां ते बे भावनी टोचे (Climax) पहोंचेलायोनी शरणागति, भक्ति, पूजा, बहुमान वगेरे सहजपणे आवे छे । जो ते न आवे तो समजवु के तेने अंतरथी दुष्कृतगर्दा के सुकृतानुमोदन थयेलु नथी। एटलुज नहीं पण दुष्कृतगर्दा के सुकृतानुमोदननो भाव तेनामां उत्पन्न थयो होय तो पण ते सानुबंध नथी। ज्ञान श्रद्धापूर्वकनो नथी। ज्ञान अने श्रद्धाथी विहीन एवो दुष्कृतगर्हा अने सुकृतानुमोदननो भाव निरनुबंध बने छ । क्षणवार टकीने चाल्यो जाय छे । तेथी तेने सानुबंध बनाववा माटे ते बे गुणोने पामेला अने तेनी टोचे पहोंचेला पुरुषोनी शरणागति अपरिहार्य छ ।Page Navigation
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