Book Title: Aradhak Banvano Marg
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Bhadrankarvijay

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Page 4
________________ ___श्री कापरड़ा स्वर्ण जयन्ती महोत्सव ग्रन्थ आत्म तावनो आश्रय श्रेटले प्रथम आत्मामा रहेली अचिन्त्य शक्तिनो स्वीकार। (Consciousness of the Eternal Soul Power) ए स्वीकार थवाथी अनंतानुबंधी रागद्वेष टली जाय छ । पूर्वे कदी न अनुभवेलो एवो समत्व भाव प्रगटे छे । ए समत्व भाव अपक्षपातिता अने मध्यस्थवृत्तितारूप छ । ___ मोटामां मोटो पक्षपात स्वदोष छ। पोते निर्गुण अने दोषवान होवा छतां पोताने निर्दोष अने गुणवान मानवानी वृत्तिरूप पक्षपात समत्व भावथी टली जाय छ । वीतराग अवस्था ज परम पूजनीय छ पोते करेला उपकारना महत्त्व जेटलुज के तेथी अधिक परकृत उपकारोनु महत्व छ, एवो मध्यस्थवृत्तितारूप समत्व भाव ए द्वष दोषना प्रतिकार स्वरूप छे । उभय प्रकारने समत्व रागद्वेषने निर्मूल करी आत्माना शुद्ध स्वभावरूप केवलज्ञान-केवलदर्शनने उत्पन्न करे छ । तेमां लोकालोक प्रतिभासित थाय छे, परंतु ते कोईथी प्रतिभासित थतु नथी, केमके ते स्वयंभू छे । तेथी वीतराग अवस्था ज परम पूजनीय छे अने तेने प्राप्त करवाना उपायभूत दुष्कृत गर्हा, सुकृतानुमोदन अने शरण गमन ए परम उपादेय छ । वीतरागोऽप्यसौ देवो, ध्यायमानो मुमुक्षभिः । स्वर्गापवर्गफलदः, शक्तिस्तस्य हि तादृशी ॥१॥ . आ देव वीतराग होवा छतां मुमुक्षु वडे ज्यारे ध्यान कराय छे त्यारे ते स्वर्गापवर्गरूपी फलने आपे छे केमके तेमनी निश्चित तेवा प्रकारनी शक्ति छ । वीतरागोऽप्यसौ ध्येयो, भव्यानां स्याद् भवच्छिदे। विच्छिन्नबन्धनस्यास्य, तादृग् नैसर्गिको गुणः । आ ध्येय वीतराग होवा छतां भव्य जीवोना भवोच्छेदने माटे थाय छे । बंधन जेनोना छेदाई गयां छे, तेश्रोमां ा नैसर्गिक गुण होय छे । वीतराग आत्माअोनो स्वभाव ज तेमनुध्यान करनारामोना रागद्वेष छेद करवानो छे 'स्वभावोऽतर्कगोचरः ।' स्वभाव तर्कनो अविषय छ । वस्तु स्वभावना नियम मुजब वीतराग वस्तुनो स्वभाव ज स्व पर भवोच्छेदक छ । कोई पण वस्तुस्वभाव तर्कथी अग्राह्य छ। परार्थशव ए ज साची दुष्कृत गर्दा अने कृतज्ञता गुण ए साचु सुकृतनु अनुमोदन दुष्कृत मात्रनुप्रायश्चित्त परार्थवृत्ति छ । केमके परपीड़ाथी दुष्कृतनु उपार्जन छे तेथी तेनी विपक्ष परार्थवृत्तिनु सेवन तेना निराकरणनो उपाय छ ।

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