Book Title: Aptavani Shreni 06
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ को चूककर फिर से अनंत भटकन भोगें, वह तो कहीं पुसाता होगा? आत्मविज्ञान ही नहीं, परंतु जहाँ पर साथ-साथ प्रकृति का साइन्स भी प्रकट हुआ है, कि जैसा कहीं भी नहीं हुआ है, वह यहाँ पर अनुभव में आता है। तो वहाँ पर उसका पूरा-पूरा लाभ उठाकर, पुरुष और प्रकृति का एक्ज़ेक्ट भेदांकन करके, प्रकृति के जाल में से क्यों नहीं छूट जाएँ? इस प्राकृत शिकंजे से कब तक दबते रहेंगे? प्रकृति से पार जाने का विज्ञान नज़दीक ही है, तो फिर खुद की प्रकृति का वर्णन ज्ञानी के सामने क्यों नहीं रखें? जिसे छूटना ही है, उसे प्रकृति की विकृति का रक्षण क्यों करना चाहिए? ज्ञानी पूरी तरह से कब पहचाने जा सकते हैं? जब ज्ञानी का 'ज्ञान' जैसा है वैसा, पूर्ण रूप से समझ में आ जाएगा तब! तब तो शायद पहचाननेवाला खुद ही उस रूप हो चुका होगा! ऐसे ज्ञान के धर्ता ज्ञानी को जगत् समझे, पाए और अहोभाव में आकंठ डूब जाए, तब संसार का स्वरूप समझ में आएगा और उसमें असंगतता अनुभव में आएगी। वीतरागों की वाणी की विशालता को कागज़ की सीमा में सीमित करने में उद्भव हुईं क्षतियाँ, वे संकलन की ही हैं, जिसके लिए क्षमाप्रार्थना। - डॉ. नीरूबहन अमीन के जय सच्चिदानंद 10

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 350