Book Title: Aptavani Shreni 06
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 9
________________ संपादकीय आप्तवाणी श्रेणी-६, वह एक अनोखी प्रतिभा की धनी है। एक तरफ व्यवहार में पल-पल के प्रोब्लम्स और दूसरी तरफ स्व-मंथन से झूझता हुआ अकेला, खुद। इन दोनों की रस्साकशी में दिन-रात उत्पन्न होनेवाले संघर्ष का सोल्युशन खुद को कहाँ से मिलेगा? कौन देगा वह? वह संघर्ष ही अंदर कुरेदता रहता है, और गाड़ी यार्ड में ही घूमती रहती है! जो कोई भी अपने जीवन के संघर्षों का हिसाब लेकर दादाश्री के पास आता है, उसे दादाश्री ऐसी कड़ी दिखा देते हैं कि जिससे वह व्यक्ति संघर्ष में से संधि प्राप्त कर लेता है! ज्ञान, वह तो शब्द से, सत्संग से या सेवा से, जैसा है वैसा प्राप्त किया जा सके, ऐसा नहीं है। वह तो ज्ञानी के अंतरआशय को समझने की दृष्टि को विकसित करने से साधा जा सकता है, जो हर किसी की अनोखी अभिव्यक्त अनुभूति है। इन वीतराग पुरुष को, यथार्थतः पहचानना है। उन्हें किस तरह पहचाना जा सकेगा? आज तक ऐसी कोई दृष्टि, ऐसा कोई मापदंड ही नहीं मिला था कि जिससे उन्हें नापा जा सके। वह दृष्टि तो पूर्वजन्म की कमाई के रूप में, आत्मा के अनंत में से एकाध आवरण को ठेठ तक हटाकर, अंतरसूझ की निर्मल किरणों द्वारा प्राप्त की जा सकती है कि जिससे ज्ञानी की पारदर्शकता प्राप्त हो सके! क्या वह निर्मल दृष्टि अपने पास है? दृष्टि निर्मल किस तरह से होगी? आज तक जन्मोजन्म की भावनाएँ की हुई हों कि, 'वीतराग दशा की प्राप्ति करवानेवाले ज्ञानीपुरुष को प्राप्त कर ही लेना है। उसके अलावा अन्य किसी चीज़ की कामना अब नहीं है,' तभी ज्ञानी के अंगुलीनिर्देश से ज्ञानबीज का चंद्रमा उसकी दृष्टि में खिल उठता है! जहाँ पर पुण्य नहीं या पाप नहीं, जहाँ पवित्रता नहीं और न ही अपवित्रता है, जहाँ कोई द्वंद्व ही नहीं, जहाँ आत्मा संपूर्ण शुद्ध रूप से प्रकाशमान हुआ है, ऐसे ज्ञानी को कोई विशेषण देना खुद अपने आप के

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