Book Title: Aptamimansa Tattvadipika Author(s): Udaychandra Jain Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan View full book textPage 9
________________ वर्णी - परिचय महान् आध्यात्मिक सन्त उदारमना पूज्य गणेशप्रसाद जी वर्णी महाराज इस युग के सर्वप्रिय लोकोन्नायक महापुरुष हुए हैं । यद्यपि वर्णी - जीका जन्म एक साधारण वैश्य कुलमें हुआ था, किन्तु उनको जैनधर्म में कुछ ऐसी विशेषताएँ प्रतीत हुई जिनके कारण उन्होंने दस वर्षकी अल्प आयुमें ही रात्रि भोजनके त्यागपूर्वक जैनधर्मको विधिवत् अंगीकार कर लिया था । जैन - वाङ्मयका परिचय प्राप्त करनेके लिए उन्होंने युवावस्था में ही माता, पत्नी आदिके प्रति ममत्व छोड़कर शास्त्रज्ञ और त्यागी विद्वानोंके साथ धर्मचर्चा में अधिकांश समय बिताया तथा धर्ममाता चिरोंजाबाईका असाधारण मातृत्व प्राप्त करके ज्ञानपिपासाकी शान्तिके लिए जयपुर, खुरजा, नवद्वीप आदि प्रमुख विद्याकेन्द्रोंमें पहुँचकर संस्कृतवाड्मय विविध अंगोंका विशेष अध्ययन किया । और अन्तमें वाराणसी में श्री स्याद्वाद महाविद्यालयकी स्थापना कर स्वयं उसके प्रथम छात्र बने । तथा न्यायाध्यापक गुरु अम्बादासजी शास्त्रीके पास न्यायशास्त्रका विधिवत् अध्ययन किया । और समग्र जैन समाज में संस्कृत-साहित्य, व्याकरण, न्याय, दर्शन, धर्म आदि विविध विषयोंके सांगोपांग अध्ययन - अध्यापनके अभिप्रायसे सागर, जबलपुर, द्रोणगिरि आदि अनेक स्थानोंमें विद्याकेन्द्रों की स्थापना की । आज समाज में जो प्रतिष्ठित विद्वान् दृष्टिगोचर हो रहे हैं उन सबकी वर्णीजीके साक्षात् शिष्यों और शिष्य परम्परामें गणना होती है । वर्णीजी समाज और संस्कृतिकी महती सेवा की है । उनका जीवन एक आदर्श जीवन रहा है । लघुसे महान् कैसे बना जाता है यह उनके जीवनसे सीखा जा सकता है । वर्णीजी जहाँ ज्ञानके धनी थे वहीं सत्य और स्वतंत्र विचारों में भी सुदृढ़ थे । सन् १९४५ में जबलपुरमें आजाद हिन्द सेनाके सैनिकोंके रक्षार्थ सम्पन्न हुई सभामें वर्णीजीने अपने ओढ़नेकी चादरको समर्पित करके कहा था कि आजाद हिन्द सेनाके सैनिकोंका बाल भी हीं हो सकता है । और वही हुआ जो उन्होंने कहा था । वर्णीजीका जन्म हँसेरा ( झाँसी) में वि० सं० १९३१ में हुआ था और वि० सं० २०१८ में ईसरी ( बिहार ) में वे समाधिमरणपूर्वक स्वर्गवासी हुए । उनके समग्र जीवनको अनुगम करनेके लिए उनके द्वारा लिखित 'मेरी जीवनगाथा' (दो भाग) पठनीय है तथा उनके सद्विचारोंका मनन करनेके लिए वर्णी-वाणी ( चार भाग ) स्वाध्याय करने योग्य है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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