Book Title: Apbhramsa Bharti 1992 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 25
________________ अपभ्रंश-भारती-2 कत्थ वि उड्डाविय सउण-सय, ण अडविहे उड्ड वि पाण गय । कत्थ वि कलाव णच्चति वणे, णावइ णट्टावा जुवइ-जणे । कत्थ इ हरिणइं भय-भीयाई, संसारहो जिह पव्वइयाई । कत्थ वि णाणाविह-रुक्ख राइ, ण महि कुलवहुअहे रोम-राइ ।' इसी प्रकार सागराभिमुख प्रवाहित होती हुई नर्मदा नदी का वर्णन कवि ने प्रियतम से मिलन के लिए जाती हुई साज-सज्जा-युक्त स्त्री के रूप में किया है - णम्मयाइ मयरहरहो जतिए, णाई पसाहणु लइउ तुरंतिए । घवघवति जे जल-पब्भारा, ते जि णाई णेउर-झंकारा । पुलिणई जाई बे वि जासु सच्छायईं, ताई जि उड्ढणाई ण जायई । ज जलु खलइ वलइ उल्लोलइ, रसणा दामु त जि ण घोलइ । जे आवत्त समुट्ठिय चंगा, ते जि णाई तणु तिवलि तरंगा । जे जल हत्थि कुम्भ सोहिल्ला, ते जि णाई थण अधुम्मिल्ला । जे डिंडीर णियरु अंदोलइ, णावइ सो जि हारु रंखोलइ । ज जलयर रण रगिउ पाणिउ, त जि · णाई तम्बोलु समाणिउ । मत्तहत्थि मय मइलिउ ज जलु, त जि णाई किउ अक्खिहिँ कज्जलु । जाउ तरंगिणीउ अवर उहउ, ताइ जि भगुराउ ण भउहउ । जाउ भमर पतिउ अल्लीणउ, केसावलिउ ताउ ण दिण्णउ ।" नर्मदा के शब्द करते हुए जल-प्रवाह नपुर झंकार के सदृश हैं, दोनों सुन्दर पुलिन उपरितन वस्त्र के समान हैं । स्खलित और उच्छलित जल रशनादाम की भ्राति को उत्पन्न करता है, उसके आवर्त शरीर की त्रिवली के समान हैं, उसमें जल हस्थियों के सजल गण्डस्थल अर्धोन्मीलित स्तनों के समान हैं । आंदोलित फेनपुंज लहराते हार के समान प्रतीत होता है, - - - - इत्यादि । महापुराण में चरित नायकों के वर्णन के अतिरिक्त प्रकृति के अनेक दृश्यों का मनोमुग्धकारी और हदयहारी वर्णन कवि पुष्पदन्त ने किया है। ऐसे स्थलों से महापुराण भरा हुआ है । सूर्योदय, चन्द्रोदय, सूर्यास्त14, संध्या15, नदी6, ऋतु, सरोवर, गंगावतरण आदि वर्णनों में कवि का प्रकृति के प्रति अनुराग प्रदर्शित होता है । प्राकृतिक दृश्यों में कवि ने प्रकृति का आलंबनरूप से संश्लिष्ट वर्णन किया है और इनके अनेक नवीन और मानव-जीवन से सम्बद्ध उपमानों का प्रयोग हुआ है । अनेक स्थलों पर नवीन कल्पना का परिचय भी मिलता है । सूर्यास्त का वर्णन करता हुआ कवि कहता है - रमणिहिं सह रमणु णिविठ्ठ जाम, रवि अत्य सिहरि संपत्तु ताम । रत्तउ दीसइ ण रइहि णिलउ, ण वरुणासा वहु घुसिण तिलउ । ण सग्ग लच्छिमाणिक्कु ढलिउ, रत्तुप्पलु ण णह सरहु घुलिउ । णं मुक्कउ जिण गुण सुद्धएण, णिय रायपुजु मयरद्धएण । अददउ जलणिहि जलि पइठ्ठ, ण दिसि कुंजर कुंभयलु दिछ । चुउ णिय छवि रंजिय सायरंभु, ण दिण सिरिणारिहि तणउ गब्भु ।

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