Book Title: Apbhramsa Bharti 1992 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 70
________________ अपभ्रंश-भारती-2 - तलवारों को निकालकर और वार करने की स्थिति में आकर भालों को झुकाते हुए और चक्रों को घुमाते हुए, धनुष पर डोरी चढ़ाते हुए, बाणों को निकालते हुए, ऐसे अज्ञात प्रमाण (सहस्रो) भटों ने उसे मारने का उपक्रम किया । 13. चन्द्रलेखा मात्रा-24 (10+8+6), अन्तर्यमक की योजना । उदाहरण - (1) वलु वयणेण तेण, सहुँ साहणेण, संचल्लिउ । णाई महासमुह, जलयर-रउद्द, उत्यल्लिउ ॥ - पउमचरिउ 40.16.2 - इन शब्दों से, राम सेना के साथ यहाँ-वहाँ इस प्रकार चले जैसे जलचरों से रौद्र महासमुद्र ही उछल पड़ा हो । (2) दिण्णाणंद-भेरि, पडिवक्स खेरि, खरवज्जिय । ण मयरहर-वेल, कल्लोलबोल, गलगज्जिय ॥ - वही, 40.16.3 - खर से रहित ? शत्रु को क्षोभ उत्पन्न करनेवाली आनन्दभेरी बजा दी गयी मानो लहरों के समूहवाली समुद्र की बेला ही गरज उठी हो । • (3) कत्था पहें पयट्ट, दुग्धोट्ट-घट्ट, मयभरिया । सिरे गुमगुमगुमन्त, - चुमचुमचुमन्त, चञ्चरिया ॥ - वही - कहीं मद से भरी हुई, जिसके सिर पर भ्रमर गुनगुन और चुमचुम कर रहे हैं ऐसी गजघटा पथ पर चल पड़ी । (4) कत्थइ खिलिहिलन्त, हयहिलिहिलन्त, णीसरिया । चञ्चल-चडुल-चवल, चलवलय पवल, पक्खरिया ॥ - वही - कहीं खिलखिलाते और हिनहिनाते हुए घोड़े निकलने लगे । चंचल, चटुल और चपल चल-वलय से प्रबल उन्हें कवच पहना दिये गये । (5) एम पयट्ट सिमिरु, ण वहल तिमिरु, उद्घाइउ । तमलङ्कार-णयरु, णिमिसन्तरेण, संपाइउ ॥ - वही - ऐसे पथ पर शिविर चला, मानो प्रचुर अन्धकार दौड़ा हो । वह उस तमलंकार नगर में एक पल के भीतर पहुँच गया । (6) पिय-विरहेण रामु, अइ-खाम-खामु, झीणङ्गउ । पय-मग्गेण तेण, कन्तहँ तणेण, ण लग्गउ ॥ - वही - अत्यन्त क्षम राम प्रिया के विरह से क्षीण शरीर लेकर ऐसे लगते थे मानो कान्ता के उसी मार्ग से जा लगे हों । 14. चारुपद दस मात्रिक छंद, अन्त गुरु-लघु या लघु । उदाहरण - (1) भो सुहय इह जम्में, णिपवित्ति जिण धम्म । करिऊण आयासु, पाविहसि सुरवासु ॥ - सुदसणचरिउ, 8.25

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