Book Title: Apbhramsa Bharti 1992 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश-भारती-2
जुलाई, 1992
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प्रौढ़ अपभ्रंश रचना सौरभ
• डॉ. कमलचन्द सोगाणी
अपभ्रंश भारती के प्रथम अंक में अपभ्रंश व्याकरण के सामान्य अध्ययन के लिए रचित 'अपभ्रंश रचना सौरभ', जो अब पुस्तक-रूप में प्रकाशित है, के कुछ अंश प्रकाशित किये गये थे। उसी क्रम में विशेष अध्ययन हेतु सद्य प्रकाश्य 'प्रौढ़ अपभ्रंश रचना सौरभ' के 'अव्यय प्रकरण का कुछ अंश यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है । इसमें अव्यय के उदाहरण अपभ्रंश के मूल-ग्रन्थों (पउमचरिउ, णायकुमारचरिउ, जसहरचरिउ तथा हेम प्राकृत व्याकरण) से संकलन किये गये हैं । आशा है, इससे विद्यार्थियों एवं पाठकों को अव्ययों के प्रयोग सहजतया स्पष्ट हो सकेंगे । पाठकों के सुझाव मेरे बहुत काम के होंगे।
1. ऐसे शब्द जिनके रूप में कोई विकार-परिवर्तन न हो और जो सदा एक से, सभी विभक्ति, सभी
वचन और सभी लिंगों में एक समान रहें, अव्यय कहलाते हैं । लिंग, विभक्ति और वचन के अनुसार जिनके रूपों में घटती-बढ़ती न हो वह अव्यय है, अभिनव प्राकृत व्याकरण, डॉ. नेमीचन्द शास्त्री, पृ. 213 ।