Book Title: Apbhramsa Bharti 1992 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश-भारती-2
37. थिय चउपासे परम-जिणिन्दहो ।
(प. च. 3.10) - (देवता) परम जिनेन्द्र के चारों ओर स्थित थे । 38. चउपासिउ वइरिहुँ तणिय सङ्क ।
. (प. च. 7.11) - चारों ओर से दुश्मनों को रोका है । 39. पोसिय सासणहर चउपासेहिं ।
(प. च. 20.1) - चारो ओर शासनधर भेजे गये । 40. को वि दूरहो ज्जे पाणेहिं विमुक्नु ।
(प. च. 65.3) - कोई दूर से ही (हनुमान को देखकर) प्राणों से छुटकारा पा जाता ।