Book Title: Apbhramsa Bharti 1992 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 146
________________ अपभ्रंश-भारती-2 137 25. मुच्छ णिएप्पिणु रहुवइ घरिणिहे । . करि ओसरिउ व पासहो करिणिहे । (प. च. 73.12) - राम की पत्नी की मूर्छा को देखकर (रावण उसी प्रकार हट गया) जैसे - मानो हथिनी के पास से हाथी हट गया हो । 26. पच्छए-पुरे वि रावणो । (प. च. 75.17) - आगे-पीछे भी रावण (ही दिखाई देता था ) । 27. पुणु पच्छए हिलिहिलन्त स-मय । खर-खुरेहिं खणन्त खोणि तुरय । (प. च. 12.8) - फिर तेज खुरों से पृथिवी खोदते हुए मद-सहित हिनहिनाते हुए घोड़े (पैदल सेना के) पीछे थे । 28. सायरु उप्परि तणु धर्इ, तलि घल्लइ रयणाई । (ह. प्रा. व्या. 4.434) - सागर ऊपर ऊपर की ओर घास को धारण करता है (किन्तु) रत्नों को पैदे में रखता 29. पेट्टहु हेट्टि हुआसणु जालिउ । (ज. च. 3.12.13) . - पेट के नीचे अग्नि जलाई गई । 30. अग्गले-पच्छले अ-परिप्पमाण । जउ-जउ जे दिट्ठि तउ तउ जि वाण । (प. च. 64.10) - (हनुमान के) आगे-पीछे असीमित बाण (थे) । जहाँ-जहाँ दृष्टि (जाती थी) वहाँ-वहाँ ही बाण (थे) । 31. थिउ अग्गए-पच्छए भड-समूह । (प. च. 16.15) - योद्धा-समूह आगे-पीछे बैठ गया । 32. तउ दूरे दिट्ठि जे जणइ सुहु । (प. च. 9.2) - तुम्हारी दृष्टि दूर से ही सुख उत्पन्न करती है । 33. दूरहो जि णिरुद्धउ वइरि-वलु । णं जम्बूदीवें उवहि-जलु । (प. च. 15.3) - शत्रुबल दूरवर्ती स्थान पर ही रोक लिया गया, मानो जंबूद्वीप के द्वारा समुद्र का जल। 34. वलहो पासे थिउ कुसलु भणेप्पिणु । (प. च. 26.1) - कुशल पूछकर राम के पास बैठ गया । . 35. रहेइ विज्जुलङ्ग अणुपच्छए, पडीवा-इन्दु व सूरहो पच्छए । (प. च. 26.1) - (उसके) पीछे विद्युदंग चोर शोभित है, मानो सूर्य के पीछे प्रतिपदा का चन्द्रमा हो । 36. जे रिउ अणुपच्छए लग्ग तहो, गय पासु पडीवा णिय-णिवहो । (प. च. 5.6) - जो दुश्मन उसके पीछे लगे थे, (व) निज राजा के पास वापस गये ।

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