Book Title: Apbhramsa Bharti 1992 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश-भारती
2. देखिए - परमात्मप्रकाश, पृ. 1, 5, 346 आदि । 3. वही, पृ. 57 । 4. परमात्मप्रकाश और योगसार, पृ. 394 । 5. देखिए, परमात्मप्रकाश की भूमिका, पृ. 57 । 6. मध्यकालीन धर्म साधना, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, साहित्य भवन लिमिटेड, इलाहाबाब
प्र. संस्करण, 1952, पृ. 44 । 7. देखिए, राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रंथों की खोज (तृतीय भाग) की प्रस्तावना, पृ.3 8. हिन्दी साहित्य का वृहत् इतिहास (भाग-1), पृ. 346 । 9. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, कामताप्रसाद जैन, प्रकाशक-भारतीय ज्ञानपीठ, काशी,'
__ .फरवरी 1947, पृ. 54 । 10. परमात्मप्रकाश की भूमिका, श्री ए. एन. उपाध्ये, पृ. 67 ।। 11. मध्यकालीन धर्मसाधना, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, पृ. 44 । 12. दोहाकोश, महापण्डित राहुल सांकृत्यायन, पृ. 4 । 13. हिन्दी काव्यधारा, महापण्डित राहुल सांकृत्यायन, पृ. 57 से 59 तक । 14. दोहाकोश, महापण्डित राहुल सांकृत्यायन, पृ. 5 । 15. हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, नामवर सिंह, पृ. 6 । 16. पुरानी हिन्दी, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्र. संस्करण 2005,
पृ. 130 । 17. (1) परमात्मप्रकाश -
संता विसय जु परिहरइ बलि किज्जउँ हउँ तासु । सो दइवेण जि मुन्डियउ सीसु खडिल्लउ जासु ॥139॥ हेम प्राकृत व्याकरण - संता भोग जु परिहरइ तसुकन्तहो बलि कीसु । तस दइवेण वि मुण्डियउं जसु खल्लिडउं सीसु ॥
(2) परमात्मप्रकाश - पंचहै णायकु वसिकरह जेण होति वसि अण्ण । मूल विण?इ तरूवरहे अवसई सुक्कहिं पण्ण ॥140॥ हेम प्रा. व्याकरण - जिब्भिन्दिउ नायगु वसि करहु जसु अधिन्नइ अन्नह । मूलि विणट्ठइ तुविणिहे अवसे सुक्कई पण्णई ॥
X (3) परमात्मप्रकाश - बलि किउ माणुस-जम्मडा देक्सन्तहैं पर सारु । जइ उटुब्भइ तो कुहइ अह उज्झइतो छारु ॥147॥
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