Book Title: Apbhramsa Bharti 1992 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 75
________________ अपभ्रंश भारती-2 भौति बिम्ब भी विभिन्न इन्द्रियों, जैसे चक्षु, घ्राण, श्रवण, स्पर्श, आस्वाद आदि से निर्मित होते हैं । महाकवि स्वयंभू द्वारा प्रस्तुत बिम्बों के अध्ययन से उनकी प्रकृति के साथ ही युग की विचार-धारा का भी पता चलता है । कुल मिलाकर, बिम्ब एक प्रकार का रूपविधान है, और ऐन्द्रिय आकर्षण ही किसी कलाकार को बिम्ब-विधान की ओर प्रेरित करता है । रूप-विधान होने के कारण ही अधिकांश बिम्ब चाक्षुष होते हैं । 66 - महाकवि द्वारा निर्मित लंका के त्रिकूट पर्वत और उस पर अवस्थित सात उपवनों से आवृत्त लंका नगरी का मनोरम चाक्षुष बिम्ब-विधान द्रष्टव्य है - गिरि दिट्टु तिकूडु जण-मण- नयण - सुहावणउ । रविडिभहो दिष्णु णं महि-कुलबहुअऍ पणउ ॥ t धरु धरहे गब्भु णीसरियउ । सत्तहिं उववणेहिं परियरिअउ । पहिलउ वणु णामेण पइण्णउ । सज्जण हियउ जेम वित्विण्णउ ॥ बीयउ जण मण-णयणानंदणु । णावर जिणवर बिम्बु सचंदणु । तइयउ वणु सुहसेउ सुहावउ । जिणवर सासणु णाईं स सावज ॥ चउथउ वणु णामेण समुच्चउ । बग-बलाय कारंड-सकोच । चारण-वणु पंचमउ रवण्णउ । चंपय तिलय वडल संछष्णउ ॥ छट्ठउ वणु णामेण णिबोहउ । महुअर - रुणुरुटंतु महुअर रुणुरुटंतु सुसोहउ । सत्तमु वणु सीयलु सच्छायउ पमउज्जाणु णाम विक्खाय ॥ तहिं गिरिवर पट्टे सोहइ लंकाणयरि किह । थिय गमवर घे गहिय पसाहण बहुअ जिह ॥ । 42, 8.9, 9.1-9 अर्थात्, लंका नगरी का (रविबिम्ब को स्पर्श करनेवाला) त्रिकूट पर्वत लोगों के मनों और आँखों के लिए ऐसा सुहावना लगता था मानो वह धरती का स्तन हो और धरती ने जिसे रवि-रूपी बालक को पीने के लिए दे दिया हो । वह पर्वत धरती का उभरा हुआ मध्यभाग के समान था। वह लकानगरी सात उपवनों से आवृत्त थी। पहला प्रकीर्ण नामक वन सज्जन हृदय के समान अतिशय विस्तृत था । जनमन के नयनों को आनन्द देनेवाला दूसरा वन जिनवर के बिम्ब (प्रतिमा) की तरह चन्दनयुक्त (चन्दन के वृक्षों से युक्त) था। तीसरा शुभसेतु या सुखसेतु नामक शोभाशाली वन जिनवर शासन के समान श्वापदों और श्रावकों से सहित था । चौथा समुच्चय नामक वन बक- बलाका और कारण्ड-क्रौंच पक्षियों से भरा था । पाँचवाँ रमणीय चारण वन चम्पक, तिलक और बकुल वृक्षों से आच्छन्न था। छठा निबोधक नामक वन मधुकरों के गुंजार से सुशोभित था । सातवाँ ख्यातनामा प्रमदोद्यान सघन छाया से युक्त और शीतल था । उस गिरिवर की पीठ पर अवस्थित लकानगरी की शोभा इस प्रकार थी, जैसे सजी सैंवरी हुई वधू श्रेष्ठ हाथी के कन्धे पर बैठी हुई हो । प्रस्तुत अवतरण में हृदयावर्जक चाक्षुष बिम्ब ('ऑप्टिकल इमेज') का विधान हुआ है । इस ऐन्द्रिय बिम्ब में दृश्य के सादृश्य पर रूप-विधान तो हुआ ही है, उपमान या अप्रस्तुत के

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