Book Title: Apbhramsa Bharti 1992 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 94
________________ अपभ्रंश भारती-2 उदाहरणार्थ ते बुढा जे सुयण सलक्खण, सत्यकम्मविसएस विपक्खण । बुद्धि वुड्ढसेवा सो पंचगु मंतु परियड्ढइ 117 उदाहरणार्थ पवड्ढड, पवड्ढइ, 2. पद्धडिया ( पज्झटिका ) इस छन्द का भी प्रत्येक चरण सोलह मात्रा से युक्त होकर दो चरण परस्पर तुकबन्दी का होता है परन्तु प्रत्येक चरण का अन्त जगण (ISI) से होता है । इसका प्रयोग सन्धि 1, 4, 79 में हुआ है जिसमें 3310 कडवक पूर्णतः पज्झटिका छन्द का परिपालन करते हैं जबकि 15 कहक्कों में 2 और 6 चरण के बीच में अलिल्लह छन्द प्रयुक्त है। - सन्धि 1 कडवक चरण (अलिल्लाह) सन्धि 4 कडवक 5 11 9 12 10 1 14 3 15 6 16 7 17 13 15 6 2 2 2 4 2 2 सन्धि 8 चरण अलिल्लह चरण (अलिल्लाह ) 4 2426 अच्छा दाइउ विससिहिसमाणु, इक्कु जि खमदिरि कीलमाणु । जइ अज्जु ण हम्मद मच्छरिल्लु, तो पच्छड देसइ दुक्खसल्तु ।" 4 10 2 4 12 4 2 4 85 3. पादाकुलक आलोच्यकाव्य के अन्तर्गत सन्धि 1, 2, 4, 5, 6 व 9 में 28 पादाकुलक छन्द वर्णित हैं जिसमें 2220 कडवक परिपूर्ण हैं परन्तु कडवक 5 में अलिल्लह एवं कडवक 1 में पज्झटिका छन्द का चरण मिश्रित है । सन्धि 6 कडवक 8 10 11 14 15 17 6 इस छन्द में भी 16 मात्राओंवाले चरण होते हैं परन्तु चरण के अन्त में लघु-गुरु या गुरु-गुरु होते हैं या सभी लघु होते हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ में पादाकुलक का प्रयोग भी बहुल है । चरण पज्झटिका

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