Book Title: Apbhramsa Bharti 1992 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 68
________________ अपभ्रंश-भारती-2 11. दोहा मात्रा 13,11; 13,11 अन्त ग ल । उदाहरण - (1) जाणमि वणि गुणगणसहिउ परजुवईहिं विरत्तु । पर महु अबुले हियवडउ उ चितेइ परत्तु ॥ - सुदसणचरिउ 8.6.1-2 - मैं जानती हूँ कि वह वणिग्वर बड़ा गुणवान है और पराई युवतियों से विरक्त है । किन्तु हे माता । मेरा हृदय और कहीं लगता ही नहीं । (2) देउल देव वि सत्थु गुरु, तित्यु वि वेउ वि कब्बु । __बच्छु जु दीसै कुसुमियउ, इंधणु होसइ सब्बु ॥ - जोइंदु - देवल (देवकुल), देव (जिनदेव) भी, शास्त्र, गुरु, तीर्थ भी, वेद भी, काव्य, वृक्ष जो कुसुमित दिखायी पड़ता है, वह सब ईधन होगा । (3) पचहें णायकु वसिकरहु, जेण होति वसि अण्णु । मूल विणट्ठइ तरुवरह, अवसई सुक्कहिं पण्णु ॥ - जोइंदु - पाँच (इंद्रियों) के नायक (मन) को वश में करो जिससे अन्य भी वश में होते हैं । तरुवर का मूल नष्ट कर देने पर पर्ण अवश्य सूखते हैं । (4) जो गुण गोवइ अप्पणा, पयडा करइ परस्सु । तसु हउँ कलि-जुगि दुल्लहहाँ, बलि किज्जउँ सुजणस्सु ॥ - हेमचन्द्र - जो अपना गुण गोवे (छिपाए) और पराए का (गुण) प्रकट करे, कलियुग में दुर्लभ उस . सज्जन पर मैं बलि जाऊँ । (5) जीविउ कासु न वल्लहउँ, धणुपुणु कासु न इट्टु । दोण्णि वि अवसर निविडिअई, तिण-सम-गणइ विसिटु ॥ - हेमचन्द्र - जीवन किसे प्यारा नहीं ? धन किसे इष्ट नहीं ? (किन्तु) अवसर आ पड़ने पर विशिष्ट (पुरुष) दोनों को ही तृण-सम गिनता है । (6) साहु वि लोउ तडफ्फडइ, वड्डत्तणहो तणेण । वड्डप्पणु परि पाविअइ, हत्यि मोक्कलडेण ॥ - हेमचन्द्र - सभी लोग बडप्पन के लिए तड़फड़ाते हैं, पर बडप्पन मुक्त हाथ (औदाय) से मिलता 12. सारीय 20-मात्रिक छन्द, अन्त में गुरु लघु । उदाहरण - संत (1) तिमिर णियच्छेवि पडिय गया तत्थ, थिउ झाणजोएण सेट्ठीसरो जत्थ । पणवति जपेड़ लग्गी पयग्गम्मि, जइ अत्थि जीवे दया तुम्ह धम्मम्मि । - सुदसणचरिउ 8.20

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