Book Title: Apbhramsa Bharti 1992 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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अपभ्रंश - भारती-2
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(4) दोहिं वि घरहिँ विविह आहरणु लइज्जइ, दो वि घरहिं लडहतरुणिहिं णच्चिज्जइ । सच्चुवहाणु एह णारिहिँ दिहिगारउ, कलह दुदु जामाइउ तूरू पियारउ ।
वही
दोनों ही घरों में विविध आभरण लिए जाने लगे । दोनों ही घरों में सुन्दर तरुणियों के नृत्य होने लगे । यह उपाख्यान ( कहावत ) सत्य ही है कि नारियों को कलह, दूध, जामाता और तूर्य प्रसन्नकारी और प्यारा होता है ।
दोनों ही घरों में केशर की छटाएँ दी गई । दोनों ही घरों में रत्नों की रंगावलि की गई । दोनों ही घरों में धवल- मंगल गान होने लगे । दोनों ही घरों में गंभीर तूर्य बजने लगा ।
9. गाहा (गाई)
मात्राएँ - 27, 12+15, 12+15 । प्रथम व तृतीय यतियाँ शब्द के बीच में। उदाहरण -
(1) मयरद्धयनच्चु नडतिउ जंबुकुमारें भेल्लियउ ।
वहुवाउ ताउ णं दिवउ कट्ठमयउ वाउल्लियउ ।
ज. सा. च. 9.1.5-6
मकरध्वज का नाच नाचती हुई उन वधुओं को जंबुकुमार ने अपने संपर्क में लायी हुई काष्ठ की पुतलियों के समान देखा ।
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(2) उवयागउ भावसरूवें भुजइ कम्मासऍणविणु ।
संसारा भावहीँ कारणु भाउ जि छड्डिय परदविणु ॥
वही, घत्ता
ज्ञानी इस परिस्थिति को उदयागत भावों (कर्मों) के अनुसार (नवीन) कर्मास्रव के बिना, परद्रव्य (में आसक्ति) को छोड़कर भोगता है, और यही भाव (विवेक) संसाराभाव अर्थात् मोक्ष का कारण है ।
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( 3 ) पिय हालियधणहडतुल्लउ वछइ किच्छे तउ करिवि ।
संदेहगउ सुरनारिउ आयउ तुम्हइँ परिहरिवि ॥ वही, 9.4 घत्ता - प्रियतम धनदत्त हाली के समान है, (क्योंकि) यह तुम सबको छोड़कर बहुत कष्ट से तप करके ऐसी सुरनारियों की वांछा करता है, जिनकी प्राप्ति में पूर्ण सन्देह है । (4) निसिदिवससत्त धाराहरु बरिसइ पूरियधरणियलु ।
संचारु न लब्भइ सलिले हुअ आदण्णउ जग सयलु ॥
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वही, 9.9 घत्ता सात रात-दिनों तक मेघ निरन्तर बरसता रहा और उसने धरातल को जल से पूर दिया । पानी के कारण संचरण (मार्ग) मिलना भी कठिन हो गया और सारा जग व्याकुल हो
गया ।
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(5) गय अद्धरत्ति बोल्लत हैं तो वि कुमारु न भवें रमइ । तर्हि कालें चोरु विज्जुच्चरु चौरेवइ पुरें परिभमइ ॥ वही, 9.11 घत्ता (इस प्रकार) कथावार्ता करते-करते आधी रात बीत गयी, तो भी कुमार संसार में आसक्त नहीं हुआ । इसी समय विद्युच्चर नाम का चोर चोरी करने के लिए नगरी में भ्रमण कर रहा था ।