Book Title: Apbhramsa Bharti 1992 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
View full book text
________________
48
अपभ्रंश-भारती-2
आंचलिकता का आग्रह किया जा रहा है वह पुनः परिनिष्ठित भाषा के लोकोन्मुखी होने की सूचना है । लगता है अद्दहमाण और नरपति नाल्ह जैसे कवियों से परिनिष्ठित भाषा के लोकभाषाकरण का जो चक्र प्रारम्भ हुआ था, वह इन एक हजार वर्षों में पूर्ण हो चुका है और हिन्दी लोक-भाषाकरण के एक नये चक्र के प्रारम्भ के संकेत दे रहा है । इस प्रवृत्ति को रोकना संभव नहीं है। हिन्दी सदैव से लोक की भाषा रही है, वह निरन्तर अपने लिखितरूप की तुलना में अपने वाचिकरूप को वरीयता देती रही है । अद्दहमाण और नरपति नाल्ह वास्तव में हमारी वाचिक परम्परा के ही कवि हैं । उनके काव्य का अध्ययन एक भाषिक चक्र के समारम्भ और अवसान को समझने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है ।