Book Title: Apbhramsa Bharti 1992 02
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Chhotelal Sharma
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 48
________________ अपभ्रंश-भारती-2 39 उसका अभाव बौद्धिक दरिद्रता का । भाषाओं की शब्दावलियों में पारिभाषिक शब्दावलि का महान स्थान मिस्टर मोरियोपाई के इस कथन से स्पष्ट भाषित हो जाएगा - "यह अनुमान लगाया गया है कि सभी सभ्य भाषाओं की शब्दावलियों में आधे शब्द वैज्ञानिक तथा शिल्प विज्ञान सम्बन्धी पारिभाषिक शब्द हैं, जिनमें से बहुत से शब्द पूरी तरह से अन्तर्राष्ट्रीय हैं ।" भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक तथा शिक्षाशास्त्री स्वर्गीय डॉ. शान्तिस्वरूप भटनागर ने लिखा था - "समस्त भारत के शिक्षाशास्त्री इस बात में सहमत हैं कि देश में आधुनिक विज्ञानों के ज्ञान के प्रचार में सबसे बड़ी बाधा समुचित पारिभाषिक शब्दावलि का अभाव है।" पारिभाषिक शब्दों, अर्द्धपारिभाषिक शब्दों तथा सामान्य शब्दों का यह महान अभाव न केवल हिन्दी में ही है, वरन् भारत की सभी आधुनिक भाषाओं में है । कभी-कभी एक ही पारिभाषिक शब्द का अर्थ भिन्न-भिन्न विषयों या विज्ञानों में भी अलगअलग हो जाता है। उदाहरण के बतौर संस्कृत शब्द 'आगम' का साधारण अर्थ 'आना' होता है । पर निरुक्त में इसका अर्थ 'किसी शब्द में किसी वर्ण का आना तथा प्रत्यय होता है । धर्मशास्त्र में आगम का अर्थ 'धर्मग्रंथ और परम्परा से चला आनेवाला सिद्धान्त' होता है । आप्टे के संस्कृत अंग्रेजी कोश में आगम के इन पाँच अर्थों के अतिरिक्त तेरह अर्थ और दिये हैं जिनमें चार-पाँच अर्थ पारिभाषिक हैं। इसीप्रकार सन्धि शब्द का साधारण अर्थ मेल है पर संस्कृत व्याकरण और राजनीति में इसके अलग-अलग अर्थ हैं जो मेल-मिलाप से कुछ मिलते हुए भी भिन्न ही हैं । आप्टे ने सन्धि शब्द के भी चौदह अर्थ दिए हैं । संस्कृत 'लोह' शब्द का सामान्य अर्थ 'लोहा" हम सब जानते हैं पर 'लोह' शब्द के अर्थ भी ताँबा, ताँबे का फौलाद, सोना, लाल, लालसा, कोई धातु, रक्त (खून), हथियार और मछली पकड़ने का काँटा भी है । अभी देखते-देखते बौद्ध धर्म का धार्मिक-पारिभाषिक शब्द 'पंचशील राजनैतिक-पारिभाषिक शब्द बन गया और उसका अर्थ सह-अस्तित्व आदि हो गया । इसीप्रकार 'समय' शब्द का सामान्य अर्थ काल (Time) का बोधक है । संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ में 'समय' के उन्नीस अर्थ उल्लिखित हैं । लेकिन जैन दर्शन में उसका अभिप्राय 'आत्मा' से भी है । अतएव 'समय' शब्द जैनदर्शन का पारिभाषिक शब्द है । 'निरोध' शब्द का जनसामान्य में अर्थ प्रचलित है - परिवार नियोजन का चर्चित उपकरण । पर जैन दर्शन में इसका अर्थ ज्ञानपूर्वक रोकना है । 'भव' का सर्वसामान्य अर्थ है संसार किन्तु जैनदर्शन में 'भव' शब्द जन्म से मरण तक की मध्यवर्ती अवधि के लिए प्रयुक्त होता है अतएव जैनदर्शन के उक्त दोनों शब्द भी पारिभाषिक हैं । यह जानकर आश्चर्य नहीं होगा कि आज अपभ्रंश वाङ्मय में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दावलि से अपरिचित होने के कारण व्यञ्जित अर्थात्मा को समझने-समझाने में बड़ी असावधानी की जा रही है । प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दावलि का सम्यक्ज्ञान प्राप्त किए बिना कोई भी अर्थ-शास्त्री (शब्दार्थ शास्त्री - Semasiologist) किसी भी काव्यांश का अर्थ और व्याख्या करने में समर्थ नहीं हो सकता । हिन्दी साहित्य पर अपभ्रंश का सीधा प्रभाव पड़ा है । हिन्दी साहित्य के अध्येता के लिए यथार्थ स्वरूप तथा अर्थ के मूलस्रोत को जानने के लिए अपभ्रंश का अध्ययन आवश्यक हो गया है । अपभ्रंश के अध्ययन के लिए उसमें प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दावली का ज्ञान होना परमावश्यक है । प्रस्तुत शोध-लेख में अपभ्रंश वाङ्मय में प्रयुक्त कतिपय पारिभाषिक शब्दों का अर्थ-अभिप्राय प्रस्तुत करना हमारा मूलाभिप्रेत है । आसव (मयणपराजयचरिउ, 6) - आस्रव । 'सू' धातु से आस्रव शब्द निष्पन्न है जिसका अर्थ है - बहकर आना । काय, वचन और मन की जो क्रिया है वह योग कहलाती है । इसी योग को आस्रव कहते हैं । शुभ और अशुभ के भेद से योग के दो भेद होते हैं - यथा -

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