Book Title: Apaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Author(s): Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
Publisher: Akhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh

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Page 12
________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 2 पश्चात् आने वाले स्वप्नों का सम्पूर्ण घटनाक्रम एक-एक करके चित्रपट की भांति मानस में उभरने लगा। चली गई अतीत में। चिन्तन की धारा बह चली। कितनी सुखद थी वह यामिनी! कैसा नीरव, शांत वातावरण था क्षत्रियकुण्ड का! संध्या ढलते ही बड़ा सुखद अनुभव हो रहा था। मुझे, मानो आज कुछ धरोहर मिलेगी। मन प्रसन्नता की लहरों में अठखेलियां कर रहा था। मैं सिद्धार्थ से वार्तालाप करके अपने शयनकक्ष में चली गई। निद्रादेवी ने सहर्ष अपनी गोद में बिठा लिया। यामिनी, यौवन-काल, अर्धजाग्रत अवस्था और देखा भव्य आलोक चतुर्दिशा में छाया है। मन गतिमान बना अग्रिम वार्ता जानने के लिए कि दिखने लगे क्रमशः चौदह स्वप्न(1) एक श्वेत, यौवनप्राप्त हस्ती, जिसके गण्डस्थल से मद चू रहा है, गगन मण्डल से उतर कर आता है। पुष्ट स्कन्ध । उज्ज्वल चतुर्दन्त। विशाल भाल। विस्फारित नेत्र। भव्याकृति। मुझे पुलकित करता हुआ प्रवेश करता है। वृषभ- धवल वर्ण, उन्नत ककुद, विशाल नेत्र, दीर्घ पूंछ वाला वृषभ आकाश से उतर कर वदन में प्रविष्ट होता है। सिंह- उज्ज्वल रजत वर्ण, केसर सटा से उपशोभित चमकदार नेत्र, रक्त तालु, लपलपाती जिह्वा, तेजपुंज युक्त सिंह मुख-मण्डल में समाहित होता है। लक्ष्मी- कमल यान में सुशोभित, रक्त वस्त्र, परिहासयुक्त वदन, मन्द-मन्द मुस्कान समन्वित अधर वाली लक्ष्मी मुख-मण्डल में प्रवेश करती है। . पुष्पमाला- देदीप्यमान पंचवर्ण वाले कुसुमित कुसुमों की माला-युगल, जो यौवनप्राप्त पराग का दान कर रही थी, अपनी भीनी-भीनी महक से सम्पूर्ण वातावरण को सुरभित कर रही थी, मधुर सुगन्ध से अलिपुंज को समाकृष्ट कर रही थी। ऐसी माला-युगल मुख-मण्डल में प्रविष्ट होती है। (6) चन्द्र- यामापति पूर्ण प्रकाश की ज्योति से प्रकाशित, शीतल, सौम्य चन्द्रिका से आप्लावित, भू–मण्डल पर उज्ज्वल-श्वेत

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