Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 33
________________ २६ अनुसन्धान-५९ ऊनयउ जलहर जोइ उत्तर-दिसि निरंतर रेडए", कंकालकाल दकाल दोहिलां, दुखना मुख्य फेडए, जनमन-अरितिहर अनि सुहकर, गयणि गुहिरू गज्जए, तिम सइजल संपूरिउ गुरु, गोविलास' विराजए. ८ किसिमिसि किसिमिसि साकर बिहिनडी ए, बिहिनडि बिहिनडी इणि अहिनाण कि, कुरुमाणी° कुठिण११ हूईए, पेखीअ पेखीअ सहिगुर वाणि कि ९ किसिमिसि साकर बिहिनडी ए बहिनडी किसिमिसि अनइ साकर, सुगुरवाणि सरस जि सुणी, सुर-असुर-कन्नर-नाग-नरवर, रंजिइ त्रिभुवनधणी, किसिमिसि निरंतर एवडए अंतर, पेखि दुखि करमाणी ए, निम हुईअ साकर कठिण काकर, मधुर गणधरवाणिए १० सुरतरु सुरतरु समवडि सोहीइ ए, मोहीइ मोहीइ जनमनवृंद कि, किंद अमीअ तणउ(इ) जीभडी ए, मुख जिम पूनिमचंद कि ११ सुरतरु समवडि सोहीइ ए सोहीइ सुरु(र)ति स्या सहि गुरु, क्षमासागर जाणीइं, बहु नयर-देसि विदेसि आगरि, जय करंत वखाणिइं, चारित्रकमला धरइ विमला, बहु प्रतापिइ दीपए, श्रीइंद्रनंदिसूरिंद केरी, आण कोई न लोपए. १२ श्रीसोम श्रीसोमजयसूरीसरू ए, सासए सासए सीस सिरोमणि तास कि, मुनिलावण्यसमय भणइ ए, वंदओ वंदओ धरिअ उल्लास कि, श्रीसोमजयसूरीसरू ए १३ सूरीसरू श्रीसोमजयसूरि, सीसविसहां १२दीपए, श्रीइंद्रनंदिसूरिंद हेलां, वादिगजघट जीपए, चंपराज कुलि अवतंस तपगछि, जयु जयु गुरु तां ल[ग]इ सुरगिरि सुधाकर सूर सागर, द्रूअ१३ नितां [जां] १४लगइं ॥ श्रीइंद्रनंदिसूरिराज भाषा समाप्ति ।

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