Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 107
________________ १०० अनुसन्धान- ५९ आ परत्वे आपणे थोडोक ऊहापोह करीशुं. कापडिया साहेबनो मत जो आपणे स्वीकारीओ तो तेना परथी फलित थतां नीचेनां तारणो पण आपणे स्वीकारवां पडे — १. वीरनिर्वाण संवत्नी गणना माटे जैन श्रमणो, युगप्रधानोनी पट्टावली, स्थविरावली व. ने बदले विक्रम संवत् साथेना तेना अन्तर पर मदार राखता हशे. केम के विक्रम संवत् क्यारथी आरम्भायो अ ज वात जो गणनाभेदनं निमित्त बनी होय, तो आपोआप नक्की थई जाय छे के युगप्रधानोनी गणना तो बन्ने वाचनाकारोना अभिप्राये सरखी ज हती. अने तेम छतां तेनुं सखापणुं बन्नेना मते गौण हतुं. २. माथुरी गणनाकारो अने वालभी गणनाकारो ओ बन्ने पक्षो विक्रम संवत् क्यारथी आरम्भायो ओ बाबते पोतपोताना अभिप्राय परत्वे जेम निश्चित हता, तेम श्रीदेवर्द्धिगणिजीनी वाचनानुं वर्ष वि.सं. ५१०नुं वर्ष छे अ बाबते अत्यन्त मक्कम हता. ( माथुरी ४७०+५१० ९८०, वालभी ४८३+५१० = ९९३) अन्यथा कोई ओक पक्षे विक्रम संवत्मां फेरफार करीने (मतलब के ते वाचनानुं वर्ष माथुरी गणना मुजब वि.सं. ५२३ अथवा वालभी गणना मुजब वि.सं. ४९७ करीने) वीरनिर्वाण संवत्नी बाबतमां गणनाभेद निवारी शकायो होत. = ३. विक्रमादित्य वीरनि. सं. ४७० मां उज्जैनीनो राजा थयो अने त्यारबाद प्रजाने अनृणी करीने तेणे संवत् प्रवर्ताव्यो. संवत् - प्रवर्तननी आ घटना राज्यारम्भना १३मा वर्षे ज बनी आ मान्यताने दृढ करनारा अनेक पुरावा वालभी गणनाकारो पासे होवा जोईओ. ४. पूर्वे जणाव्युं तेम वालभी युगप्रधानपट्टावली जो माथुरी गणना साथेना वालभी गणनाना तफावतमां मूळभूत निमित्तभूत न होय, तो ते पट्टावली पण माथुरी युगप्रधानपट्टावली प्रमाणे वाचनानुं वर्ष वीरनि. सं. ९८० ज दर्शावती हशे ओम मानवुं पडे. बीजी तरफ विक्रम संवत्ने आधारित गणतरी मुजब वालभी गणना त्यारे वीरनि. सं. ९९३नुं वर्ष स्वीकारती हशे. पट्टावली अने गणना वच्चेना १३ वर्षना आ तफावतने पूरवा माटे वालभी वाचनाकारोओ पट्टावलीमां श्री श्रीगुप्ताचार्यनो प्रक्षेप कर्यो हशे .

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