Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून - २०१२
११७
उल्लेख जडतो नथी.
*तर्कशुद्धतानी कसोटीमां पण अभेदवाद करतां युगपवाद वधु खरो उतरे छे. केमके - १. वि.भाष्य के विशेष-णवतिमां अभेदवादना खण्डन बाद तेना परिष्काररूपे
युगपद्वाद प्ररूपायो छे. आ वात सूचवे छे के क्रमवाद द्वारा अभेदवाद
पर करायेला आक्षेपोने सहन करवानी क्षमता तो युगपद्वाद धरावे ज छे. २. अभेदवादनो स्वीकार १२ उपयोग, ४ दर्शन, केवलदर्शनावरण कर्म जेवी
घणी घणी शास्त्रीय प्ररूपणाओनो छेद उडाड्या पछी ज थई शके. आनी अपेक्षाओ युगपद्वादे बहु ओछी प्ररूपणाओने अमान्य करवानी
रहे छे. ३. वाचक उमास्वातिजीओ तत्त्वार्थभाष्यमां युगपद्वाद ज प्ररूप्यो छे.१८८ ४. दिगम्बर-परम्परा तो प्राचीन कालथी लइने आज सुधी अकमात्र युगपद्वाद
ज स्वीकारती आवी छे'९. शास्त्रबलना सहारे युगपद्वादनु खण्डन करवा छतां श्रीजिनभद्रगणि अने तत्त्वार्थ-टीकाकार श्रीसिद्धसेनगणि जणावे छे के युगपद्वादनो स्वीकार करवामां अमने वांधो नथी, परन्तु अने प्रमाणित करनारुं शास्त्रवचन अमे नथी जोता अने ओथी अमे ओनो स्वीकार नथी करता.२० स्पष्ट छे के युगपद्वादनी तर्कशुद्धता तरफ ज तेओनो इशारो छे. आनी सामे अभेदवाद तर्कबल अने शास्त्रबल बन्ने रीते निर्बल छे. जोवू अने जाणवू ओ बन्ने क्रिया ओक ज छे ओवी अभेदवादीनी वात पण बुद्धिसंगत नथी. अना करतां केवलज्ञान अने केवलदर्शननां आवारक कर्मोनो क्षय जेम साथे थाय छे, तेम क्षयथी जन्य केवलज्ञान-दर्शननी उत्पत्ति पण साथे ज थाय तेवं युगपद्वादीनु मन्तव्य वधु बुद्धिग्राह्य छे.
आम जो अभेदवादनी अपेक्षाओ युगपवाद वधु तर्कपूत होय तो महान तार्किकाचार्य सिद्धसेन दिवाकरजी शा माटे युगपद्वादने छोडीने अभेदवाद स्वीकारे ?

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