Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 134
________________ जून - २०१२ १२७ वि. - आ बन्ने गाथाओमां दर्शावेलो भाव धरावती गाथाओ विशेषणवतिमां अनुक्रमे २२४ अने २४८ क्रमाङ्के जोवा मळे छे. दंसणणाणावरणक्खए समाणम्मि कस्स पुव्वअरं । होज्ज समं उप्पाओ हंदि दुए णत्थि उवओगा ॥२.९॥ टी. - दर्शनावरण अने ज्ञानावरण बन्नेनो क्षय समानकालीन होवाथी कोनो पहेलां उत्पाद मानशो ? (मतलब के पहेलां केवलज्ञान प्रगटे के केवलदर्शन ? तेमां कोई नियामक नथी. माटे) बन्नेनो साथे उत्पाद थाय छे ओम मानवू जोइओ. (आम युगपद्वादीओ कहे छते अभेदवादी आचार्य स्वमन्तव्य दर्शावतां कहे छे के ) पण ओक साथे बे उपयोग होता नथी. वि. - टीकाकार भगवन्तना मते आ गाथाथी सिद्धसेन दिवाकरजीना स्वपक्ष अभेदवाद(-भेदाभेदवाद)नी स्थापना थई छे. अर्थात् अत्यार सुधी आचार्ये युगपद्वादनु अवलम्बन लइने क्रमवादनुं खण्डन कर्यु अने हवे तेओ स्वपक्ष तरीके भेदाभेदवाद स्थापी क्रमवाद-युगपद्वाद बन्नेनुं ओकसाथे खण्डन करे छे. टीकाकार भगवन्तनी आ मान्यतानो आधार "हंदि दुए णत्थि उवओगा" ओ पङ्क्ति छे के जे भेदाभेदवादी आचार्य तरफथी बोलाती होवानुं तेओओ दर्शाव्युं छे. आ परत्वे केटलीक समस्याओ - १. हजु आचार्ये स्वसम्मत पक्ष तरीके भेदाभेदवादनी स्थापना ज न करी होय, भेदाभेदवादनुं मन्तव्य ज समजाव्युं न होय अने अेक गाथानी चोथी लीटीमां भेदाभेदवादने पकडी युगपद्वादनुं खण्डन अचानक ज चालु करी दे ओम बनवू शक्य खरं ? आचार्य अत्यार सुधी युगपद्वादनु अवलम्बन क्रमवादना खण्डन माटे लीधुं अq आनुं तात्पर्य समजाय. परन्तु क्रमवाद- खण्डन जे दलीलोथी अत्यार सुधी युगपद्वादे कर्यु छे, ते सघळी दलीलो भेदाभेदवाद तरफथी पण प्रयोजवी शक्य हती ज. छतां पण आचार्य प्रथमथी ज भेदाभेदवाद न प्ररूपे अने युगपद्वादने मान्य करे ते विचारणीय नथी? युगपद्वाद केवलज्ञान अने केवलदर्शनने समानकालीन स्वतन्त्र उपयोगो माने छे. ज्यारे भेदाभेदवाद ओ बन्नेने स्वतन्त्र उपयोगो नथी गणतो, पण ३ .

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