Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 156
________________ जून २०१२ - खूटतो अक्षर उमेरीने पाठशुद्धि साधी शकाय छे : पुराराधि [तो ] राजराजेन्द्रदेवैः ... ‘रत्नाकरपञ्चविंशतिका'नी एक वृत्ति पण आमां प्रगट थई छे. एनो टबार्थ पण ए ज प्रतिमां छे ते पण छाप्यो छे. सम्पादिका साध्वीजीए भूमिकामां जणायुं छे के टबार्थ पण वृत्तिकारे पोते लख्यो छे. वस्तुतः टबार्थ अन्यनो करेलो छे, जे टीका अने टबाना पाठनी सरखामणी करवाथी स्पष्ट थाय छे. टीकाकारे अन्तिम श्लोकमां 'शिव- श्रीरत्नाकर' (मोक्षलक्ष्मीना समुद्र) एवो समास स्वीकारीने विवरण कर्तुं छे ज्यारे टबामां 'शिवं' छे अने तेने बोधिरत्ननुं विशेषण बनावीने अर्थ कर्यो छे. श्लो. ७मां टीकाकारे मनोज्ञवृत्त - त्वदास्य० एम समास मान्यो छे. टबाकारे 'मनोज्ञवृत्तं' करीने आने मननुं विशेषण समजी अर्थ कर्यो छे. आथी वृत्तिकार तथा टबाकार एक नथी, ए निश्चित थाय छे. टीकामां मूळना केटलांक पाठान्तरो ( आजे प्रचलित पाठ करतां भिन्न) जोवा मळे छे. १४९ श्री जिनवल्लभसूरिरचित 'प्रश्नोत्तरशतक'नी एक लघु टीका अहीं प्रकाशित थई छे. कर्तानुं भाषा परनुं प्रभुत्व अने कल्पनासमृद्ध कवित्व अद्भुत कही शकाय तेवां छे. ‘अनेकान्ततत्त्वमीमांसा' प्राचीन सूत्रशैलीमां अर्वाचीन आचार्य द्वारा रचित ग्रन्थ छे. षड्दर्शनना व्यापक परिचय विना आनुं विवरण न करी शकाय. ग्रन्थनामनो अर्थ 'अनेकान्तना तत्त्वनी मीमांसा' एवो नथी करवानो, पण ‘अनेकान्त ( अनेक धर्मात्मक) एवा तत्त्वनी मीमांसा' एम करवानो छे. 'सच्चायिका बत्तीसी'नी भाषा मिश्र जेवी छे. सम्पादकश्री आने मुख्यतया राजस्थानी कृति गणे छे, परंतु कृतिमां गुजरातीनी असर वधारे जणाय छे. इम, ज्या, त्यां चढती, समर्यां, रांकाथी, अंधारइ, अजुआलइ जेवा शब्दो प्रगटपणे गुजराती छे. राजस्थानी तथा पंजाबी उपरांत अपभ्रंशनी असर पण आमां छे ज. क. १४मां 'त्वरा' छपायुं छे पण त्यां साचो पाठ 'तूरा' हशे . क. ६मांनो ‘अठील' शब्द देश्य के प्राकृत भाषानो जणाय छे. आनो अर्थ 'बेड़ी' (बन्धन) थाय छे. अपणाइत (८) : पोतापणुं. इसराई (१४) = एैश्वर्य, मोटाई. करसण (२३) कृष्ण नहि पण कर्षण = खेती, कृषि. सैंस (१२) वाचनभूल छे. भैंस जोइए. बीजा केटलाक नोंधवा जेवा शब्दो = = —

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