Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 140
________________ जून - २०१२ १३३ के आगळ-पाछळनी गाथाओने युगपद्वादमां फलित करवामां आवी होय. प्रश्न ओ छे के जो आ गाथाओ युगपद्वादनी पण प्ररूपक बनती होय तो युगपद्वादने आचार्यना मन्तव्यथी विरोधी कई रीते गणी शकाय ? ___ वळी, टीकाकार भगवन्त भेदाभेदवादमां केवलदर्शनने केवलज्ञानथी अभिन्न बनावीने तेमां अनन्ततानी सङ्गति करे छे, ते वात पण विचारणीय छे. केम के आ रीते तो केवलदर्शनगत अनन्तता औपचारिक ज थशे. अने बदले युगपद्वादी टीकाकार भगवन्ते घटावेली अनन्तता वधु युक्तिसङ्गत लागे छे. अने श्रीसिद्धसेनाचार्यना भेदाभेदवादमां पण ज रीते घटी शके छे. भण्णइ जह चउनाणी जुज्जइ णियमा तहेव एयं पि । भण्णइ ण पंचणाणी जहेव अरहा तहेयं पि ॥२.१५॥ टी. - (क्रमवादी-) जेम चार ज्ञानोनो उपयोग अकसाथे न होवा छतां छद्मस्थने चतुर्ज्ञानी कहेवामां आवे छे, तेम केवलज्ञान अने केवलदर्शननो ओकसाथे उपयोग न होवा छतां, केवलीने सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी कहेवामां आव्या होय तेम न बने ? (भेदाभेदवादी-) केवलीने केवलज्ञाननी जेम मत्यादि ४ ज्ञानोनां पण आवरणनो क्षय होवा छतां ४ ज्ञानोनो पृथक् उपयोग न होवाथी जेम तेमने 'पञ्चज्ञानी' नथी कहेवामां आवता; तेम केवलज्ञान अने केवलदर्शननो उपयोग क्रमवादमां ओकसाथे न होवाथी, तेमने 'सर्वज्ञ-सर्वदर्शी' पण न कहेवाय. भेदाभेदवादमां तो बन्ने उपयोग ओकसाथे प्रवर्तता होवाथी केवलीने 'सर्वज्ञसर्वदर्शी' गणी ज शकाय छे. वि. - वि.ण.मां २४७मा क्रमाङ्के प्रस्तुत भावने जणावती गाथा जोवा मळे छे. पण्णवणिज्जा भावा समत्तसुयनाणदंसणाविसओ । ओहिमणपज्जवाण उ अण्णोण्णविलक्खणा विसओ ॥२.१६।। तम्हा चउविभागो जुज्जइ, ण उ णाणदंसणजिणाणं । सयलमणावरणमणंतमक्खयं केवलं जम्हा ॥२.१७॥ टी. - प्रज्ञापनीय भावो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अने दर्शनोना विषयभूत

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