Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
जून - २०१२
१२१
अभेद पण जणावे छे अने ‘पश्यति बुध्यते च युगपत्'थी बन्नेनी अकसाथे प्रवृत्ति दर्शाववा द्वारा बन्नेनो भेद पण जणावे छे.
सन्मतिटीकाकार ज्यारे श्रीसिद्धसेनाचार्यने अभेदवादी जणावे छे त्यारे तेमना मनमां तो उपर दर्शावेलो भेदाभेदवाद ज छे –
"भिन्नावरणत्वादेव च श्रुतावधिवन्नैकत्वमेकान्ततो ज्ञान-दर्शनयोरेकदोभयाभ्युपगमवादेनैव ।" - २.५ टीका
"सामान्यविशेषज्ञेयसंस्पर्शी उभयैकस्वभाव एवाऽयं केवलिप्रत्ययः ।" - २.११ टीका
"अतो भिन्ने एव केवलज्ञानदर्शने, न चाऽत्यन्तं तयोर्भेद एव - केवलान्तर्भूतत्वेन तयोरभेदात्, न चैवमभेदाद्वैतमेव - सूत्रयुक्तिविरोधात् ।" - २.२० टीका
"केवलयोरप्येतन्मात्रेणैव विशेषः, एकान्तभेदाभेदपक्षे तत्स्वभावयोः पूर्वोक्तदोषप्रसङ्गाद् ।" - २.२१ टीका
"ततो युगपज्ज्ञानदर्शनोपयोगद्वयात्मकैकोपयोगरूपः केवलावबोधोऽभ्युपगन्तव्य इति सूरेरभिप्रायः ।" - २.३० टीका
मुश्केली फक्त त्यां ज छे के श्रीअभयदेवसूरिजीओ आ भेदाभेदवादने ज 'अभेदवाद' अq नाम आप्युं छे. आ नाम आपती वखते तेओओ ओ ध्यान पर नथी लीधुं लागतुं के दिवाकरजीनी विचारधाराथी जुदी विचारधारा धरावनारो अन्य ओक मत, के जे वि.भाष्य अने विशेष-णवति जेवा ग्रन्थोमां केवलदर्शननो के तेनी केवलज्ञानथी जुदी सत्तानो निषेध करनारा मत तरीके व्यावर्णित छे, ते पण 'अभेदवाद' तरीके ओळखाय छे. जो के बनी शके के आ अन्य मत श्रीअभयदेवसूरिजीना काल सुधीमां 'अभेदवाद' अर्बु विधिवत् नाम न पण पाम्यो होय, तेथी तेमणे श्रीसिद्धासेनाचार्यना मन्तव्यने 'अभेदवाद' तरीके ओळखाव्यु होय; पण पाछळना जैन विद्वानोओ उतावळमां ज, बन्ने- 'अभेदवाद' अq ओकसरखं नाम जोइने, विशेष-णवतिमां वणित अभेदवादने दिवाकरजी- मन्तव्य ज गणी लीधुं होय एम बने. दिवाकरजीने थयेलो कदाच आ मोटामां मोटो अन्याय हशे.

Page Navigation
1 ... 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161