Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 131
________________ १२४ अनुसन्धान-५९ समावेश करवो पडे. अने ते युगपद्वादमां ज शक्य छे. कारण के युगपद्वादनुं मुख्य अवलम्बन - केवलज्ञान अने केवलदर्शननो ओक साथे उपयोग भेदाभेदवादने पण मान्य छे. श्रीमल्लवादीजी, श्रीहरिभद्रसूरिजी, श्रीमलयगिरिजी व. आ ज कारणसर श्रीसिद्धसेनाचार्यने युगपद्वादी गणे छे. ___ पण भेदाभेदवाद युगपद्वादनी जेम केवलज्ञान अने केवलदर्शनने परस्परथी निरपेक्ष स्वतन्त्र उपयोगो नथी गणतो. केम के ओकसाथे प्रवर्तनारा बे स्वतन्त्र उपयोगो ओकसाथे बे स्वतन्त्र बोधने जन्मावे. अने आत्मानी तथास्वभावता ओकसाथे एक ज बोधमां वर्तवानी छे. आ स्वभाव 'सव्वस्स केवलिस्सा जुगवं दो नत्थि उवओगा'मां जणाव्या मुजब केवलि अवस्थामां पण निवृत्त नथी थतो. माटे पूर्वे जणाव्युं तेम भेदाभेदवाद, 'आंखथी जोवानी शक्ति ओक, तज्जन्य जोवानी क्रिया बे आंखनी बे, अने ओ बे क्रियाओथी देखातुं दृश्य पार्छ ओक - अनी जेम, केवलज्ञानशक्ति ओक, ओ शक्तिनां क्रियात्मक स्वरूपो केवलज्ञान अने केवलदर्शन अम बे(के जे परस्पर सापेक्ष छे; केम के जे द्रव्य-पर्यायोने सामान्यपणे केवलदर्शन जुओ छे, ते ज द्रव्य-पर्यायोने विशेषपणे केवलज्ञान जाणे छे), अने ओ उभय क्रियाथी जनमनारो परिपूर्ण केवलबोध अक' अq स्वीकारे छे. मतलब के भेदाभेदवाद केवलज्ञान अने केवलदर्शनने ओक ज केवलबोधना घटकरूपमा अभिन्न गणे छे. अने तेथी ज श्रीअभयदेवसूरिजी के उपाध्याय श्रीयशोविजयजी श्रीसिद्धसेनाचार्यने 'अभेदवादी' तरीके ओळखावे छे. आ रीते विचारीओ तो भेदाभेदवादने अभेदवाद अने युगपद्वाद बन्नेने व्यापीने रहेलो स्वतन्त्र चोथो वाद गणी शकाय. पण ओम गणती वखते ध्यानमा राखवा जेवी वात ओ छे के भेदाभेदवाद युगपद्वादनो विरोधी नथी, कारण के तेनी पोतानी आधारभूमि ज युगपद्वाद छे. जो के सन्मतिटीकामां श्रीअभयदेवसूरिजीओ तेने युगपद्वादना विरोधी तरीके वर्णव्यो छे, तेना द्वारा युगपद्वादनुं खण्डन पण देखाड्युं छे, पण ते योग्य छे के नहीं ते आपणे सन्मतितर्कगत प्रस्तुत विषयने सम्बन्धित चर्चा द्वारा अवलोकीशुं. आ चर्चा दरम्यान आपणे सौप्रथम दरेक गाथानो संक्षेपमा टीकाकार भगवन्ते करेलो अर्थ जोइशुं अने त्यारबाद जरूर जणाशे त्यां ओ अर्थ पर विचार-विमर्श करीशं.

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