Book Title: Anusandhan 2012 07 SrNo 59
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 129
________________ १२२ अनुसन्धान- ५९ विशेष-णवतिनो अभेदवाद वास्तवमां दर्शनसमुच्छेदवाद छे". आ मत अ धारणा पर रचायो छे के सर्वद्रव्योमां रहेला महासामान्यने जोनारुं केवलदर्शन छे. अने तेना सिवायना सर्व धर्मोने जाणनारुं केवलज्ञान छे. २६ आ धारणा प्रमाणे केवलदर्शन, केवलज्ञाननी अपेक्षाओ अत्यन्त परिमित विषयक्षेत्र धरावनाएं बने छे. अने तेथी, सघळाये धर्मोने केवलज्ञान जाणे छे तो महासामान्यने पण जाणशे ज ओवा तर्कना बळे, केवलदर्शनना अस्तित्वनो निषेध के तेनो केवलज्ञानमां अन्तर्भाव शक्य बने छे. ट्रंकमां, आ मत केवलज्ञान-दर्शननो सर्वथा अभेद स्वीकारे छे, अने ओ माटे अनुं तमाम ध्यान केवलदर्शननी स्वतन्त्र सत्ताना इन्कार पर केन्द्रित छे. आ रीते केवलदर्शननो उच्छेद करवो ओ कंइ वादी सिद्धसेन दिवाकरजीनुं मन्तव्य नथी. आ वातनो सौथी मोटो पुरावो से छे के दर्शनसमुच्छेदवादीओ तरफथी केवलज्ञान - दर्शनना औक्यने समजवा जे मतिज्ञानचक्षुर्दर्शननुं दृष्टान्त आपवामां आवतुं हतुं, अने से दृष्टान्त द्वारा ओक ज उपयोगनां बे नाम छे अवुं साबित करवामां आवतुं हतुं, ते विशेष - णवतिमां उल्लिखित दृष्टान्त, थोडाक शाब्दिक फेरफार साथे सन्मतितर्कमां पूर्वपक्ष तरीके जोवा मळे छे, अने त्यां अ रीते बन्ने वच्चे सर्वथा अभेद छे से वातने खोटी साबित करी, ज्ञान-दर्शन वच्चे स्वभावतः भेद देखाडवामां आव्यो छे. "मइणाणाणत्थंतरभूयस्स वि चक्खुदंसणस्सेह । जह दंसणोवयारो जुत्तो तह केवलस्सावि ॥" "दंसणमोग्गहमेत्तं घडोत्ति णिव्वण्णणा हवइ नाणं । जइ एत्थ केवलाण वि विसेसणं एत्तियं चेव ॥" " जइ ओग्गहमेत्तं दंसणं ति मन्नसि...." सन्मति २.२३ वि.ण. २१२ वास्तवमां बन्ने अभेदवादना शब्दो सरखा होवा छतां, [" णाणं ति दंसणं ति य एक्कं चिय केवल तस्स" (- वि.ण. १९७) " तम्हा तं णाणं दंसणं च अविसेसओ सिद्धं" (-सन्मति. २.३०)], आ बन्ने वच्चे पायानो तफावत ओ छे के दर्शनसमुच्छेदात्मक अभेदवाद केवलज्ञान अने केवलदर्शननुं सर्वथा औक्य स्वीकारे छे, ज्यारे दिवाकरजीनो भेदाभेदवाद बन्नेने स्वभावतः क्रियारूपे भिन्न मानीने, ओक ज बोधना कारक तरीके अने ओक ज शक्तिना स्वरूप

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